शनिवार, 21 नवंबर 2009

बिलासपुर -लेह रेल लाइन का सर्वे पूरा

बिलासपुर -लेह रेल लाइन का सर्वे पूरा
शिमला. सामरिक दृष्टि से अहम 65 हजार करोड़ के रेल प्रोजेक्ट बिलासपुर -लेह रेल लाइन का सर्वे पूरा हो चुका है। इसी के साथ जोगेंद्रनगर से मंडी भी रेल मार्ग से जुड़ने वाला है। पठानकोट—जोगेंद्रनगर नेरो गेज रेल मार्ग की जगह ब्रॉडगेज रेल का सपना भी जल्द ही आकार लेने वाला है।
राज्यसभा में सीमा क्षेत्रों में रेल लाइन के विस्तार पर एक प्रश्न के लिखित उत्तर में रेल राज्य मंत्री ई अहमद ने शुक्रवार को यह जानकारी दी। उन्होंने बताया कि जोगेंद्रनगर-मंडी के बीच नई रेल लाइन बिछाने केलिए सर्वे पूरा कर लिया गया है। रेल मंत्रालय अब सर्वेक्षण रिपरेट तैयार कर रहा है। बिलासपुर—लेह रेल लाइन के लिए मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को फरवरी 2008 में पत्र लिखा था।प्रदेश सरकार ने इस रेल मार्ग के निर्माण के लिए ट्रांस हिमालयन रेलवे प्राइवेट लिमिटेड कंपनी से सितंबर 2008 में प्री फिजिबिलिटी सर्वे करवाया था, जिसे केंद्र की तकनीकी टीम ने अप्रूव कर लिया था। हालांकि प्रदेश कांग्रेस के लीडर इसे प्रदेश भाजपा सरकार का डे ड्रीम कहते रहे हैं। पठानकोट—जोगेंद्रनगर नेरो गेज लाइन की जगह ब्रॉड गेज लाइन बिछाने के लिए रेलवे मंत्रालय ने सर्वे शुरू कर दिया गया है। इस रेल लाइन को लेह—बिलासपुर रेल लाइन का हिस्सा बनाने के लिए इसको ब्रॉडगेज करने और मंडी तक इसका विस्तार करने का अनुरोध रेल मंत्रालय से मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने किया था।

सोमवार, 2 नवंबर 2009

बर्फीले रेगिस्तान में छह माह के लिए जिंदगी कैद

बर्फीले रेगिस्तान में छह माह के लिए जिंदगी कैद

शिमला. सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण और दुनिया के सबसे ऊंचे सड़क मार्गो में शुमार मनाली—लेह सड़क मार्ग को सीमा सड़क संगठन ने आधिकारिक तौर पर 6 माह के लिए बंद कर दिया है।
बर्फबारी के चलते 1 नवंबर से 15 अप्रैल तक 35 हजार की आबादी वाले जिले लाहौल—स्पीति के कई दर्रो से होकर गुजरने वाले 222 किलोमीटर लंबे मार्ग पर वाहनों की आवाजाही भी बंद रहेगी। वहीं, लाहौल—स्पीति जिला भी छह माह के लिए शेष विश्व से कट जाएगा। इस दौरान यहां आने—जाने का एकमात्र जरिया हेलीकॉप्टर ही होगा।
इस मार्ग से लेह स्थित सेना के बेस कैंप के लिए रसद पहुंचाई जाती है। इस सड़क के रख रखाव का जिम्मा सीमा सड़क संगठन के पास है। 15 नवंबर के बाद सरकार इस मार्ग वाहन ले जाने पर पाबंदी लगाती है। इस दौरान सेना की रसद पठानकोट—जम्मू मार्ग से भेजी जाएगी।
सीमा सड़क संगठन दीपक परियोजना के मुख्य अभियंता आईआर माथुर ने रविवार को इस मार्ग के बंद किए जाने की घोषणा की। लाहौल घाटी में लोगों की आमदनी का मुख्य जरिया आलू और मटर की खेती ही है। छह माह तक लोग खेती पर खूब मेहनत करते हैं। हालांकि लाहौल—स्पीति के कई लोगों ने यहां से बाहर भी घर बना रखे हैं, लेकिन 60 फीसदी लोग सर्दी में भी यहीं रहना पसंद करते हैं।
घाटी के लोगों के लिए आसान नहीं यह समय काटना
कबायली जिले के लोगों के लिए बर्फबारी के बीच दौर रहना किसी चुनौती से कम नहीं है। सर्दियां शुरू होते ही यहां के बाशिंदों की धुकधुकी बढ़ जाती है। समुद्रतल से करीब 13050 फुट की ऊंचाई वाले रोहतांग र्दे पर बर्फ गिरते ही जिले में जिंदगी छह माह के लिए बर्फीले रेगिस्तान में कैद हो जाती है। लोगों ने छह माह के लिए राशन और अन्य जरूरी सामान इकट्ठा कर लिया है।
राशन पर सरकार लोगों को सब्सिडी दी जाती है। लोगों के लिए सबसे बड़ी परेशानी तक होती है जब कोई बीमार हो जाता है। पिछली बार भी गंभीर रूप से बीमार लोग कई दिन जिले में ही फंसे रहे। क्षेत्र में बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं न होने के कारण लोगों से हेलीकॉप्टर कुल्लू पहुंचाया गया था। 15 नवंबर सीमा सड़क संगठन कोकसर पुल को उखाड़ लेता है। इस बार इसे नहीं उखाड़ा जाएगा।
रोहतांग टनल पर टिकी आस
सर्दियों में भी लाहौल स्पीति देश दुनिया से जुडा़ रहे, इसकी आस रोहतांग टनल पर ही टिकी है। कारगिल युद्ध के बाद रोहतांग टनल बनाने की घोषणा हुई थी। मई 2001 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने टनल का शिलान्यास किया था। 8.8 किलोमीटर लंबी सुरंग बनने से मनाली—लेह के बीच 40 किलोमीटर की दूरी कम हो जाएगी। 2004 की कीमतों के अनुसार सुरंग के निर्माण पर 1355.82 करोड़ रुपए खर्च होने थे।
शिलान्यास को आठ साल बीत जाने के बाद भी सुरंग का निर्माण कार्य शुरू नहीं हो पाया है। लोगों में इस बात को लेकर रोष है कि सरकार इतने साल से इस समस्या का कोई हल नहीं निकाल पाई है। यदि यह टनल बन जाती है तो सेना को पहले की तुलना में जल्दी रसद मिल सकेगी। वहीं पर्यटन क्षेत्र में भी विकास की संभावनाएं और बढ़ेंगीं।

रविवार, 6 सितंबर 2009

रविवार, 23 अगस्त 2009

हुस्न पहाडों का

हुस्न की दौलत से लबरेज पहाडों की ख़ूबसूरत बालाएं मुंबई में अपनी कामयाबी के झंडे बुलंद कर रही हैं।

शुक्रवार, 19 जून 2009

सुख का दुःख

सुख का दुःख
केन्द्रीय मंत्री सुखराम ने आख़िर कांग्रेस में अपने धुर विरोधी वीरभद्र के सेंटर में मिनिस्टर बनने पर अपने हाथ खड़े कर दिए। ब्लॉगर के साथ आखरी पत्रकार वार्ता के दौरान मंडी स्थित अपने घर में सुखराम ।



















मंगलवार, 16 जून 2009

मंडी से लड़ी जायेगी इंदौर की लडाई

आरटीआईब्यूरो ने जगाई मध्य प्रदेश के वित्त निगन के कर्मी कीआस
डी से लड़ी जायेगी इंदौर की लडाई
निगम की तबादला नीतिसे प्रेषण कर्मचारी ने भेजी फरियाद
डीडी न्यूज़ के जानने का हक़ प्रोग्राम से मिला ब्यूरो का पत्ता
आरटीआई ब्यूरो ने मांगी वित्त निगम मद्य प्रदेश से सूचना
आरटीआई ब्यूरो डेस्क।
सूचना क्रांति के दौर में

खली का हिमाचल प्रेम सात समुंदर पार भी

अमेरिका में जी न्यूज़ के वरिष्ट सवांददाता नीरज ठाकुर के साथ खली
अमेरिका में माय हिमाचल के संस्थापक अवनीश कटोच के साथ खली


रविवार, 14 जून 2009

अपनी कमजोरी से हरे काँगड़ा और शिमला


अपनी कमजोरी से हारे काँगड़ा और शिमला
वीरभद्र सिंह बोले, हमीरपुर में नारेन्द्र ठाकुर का प्रदर्शन रहा शानदार
इस्पात मिनिस्टर की हिमाचल में दो स्टील प्रोसेसिंग कारखानों की घोषणा
विनोद भावुक ।
वीरभद्र सिंह को इस बात् का बेहद मलाल है की लोकसभा चुनाव में काँगड़ा और शिमला में कांग्रेस को अपनी कमिओं के चलते मामूली अन्तर से बीजेपी से हारने को मजबूर होना पड़ा। प्रचार के लिए वह हमीरपुर, काँगड़ा ओ शिमला जन चाहते थे , लेकिन उन्हें हेलीकॉप्टर ही उपलब्द नहीं करवाया गया । उनका कहना है कि हमीरपुर में नरेंदर ठाकुर ने हार के बावजूद शानदार प्रदर्शन किया है । uनका मुकाबला प्रदेश के मुख्यमंत्री के बेटे के साथ था। दूसरी ओर नरेंदर को टिकेट देने से पहले खूब ड्रामा हुआ। पहले टिकेट नरेंदर को मिला, फ़िर मदन लाल को टिकेट मिला ओर आख़िर में फ़िर नरेंदर ठाकुर को टिकेट दे कर मदन में उतरा गया । एसे में उनके पास प्रचार के लिए वकत ही नहीं मिल पाया। इसके बावजूद नरेंदर ने बीजेपी उम्मीदवार की लीड को एक लाख से ज्यादा कम कर दिया। सेंटरमें इस्पात मंत्री बनने के बाद मंडी पहुंचे वीरभद्र सिंह ने कहा की प्रदेश में दो स्टील प्रोसेसिंग कारखाने खोले जायेंगे .

शनिवार, 13 जून 2009

हिमाचल के अटल

हिमाचल के अटल
अटल बिहारी वाजपेयी का हिमाचल के साथ काश लगाव है। बेशक इन दिनों वे बीमार चल रहे हैं लेकिन जब सवस्थ थे तो छुटियाँ मानाने यहाँ आते रहे हैं। तस्वीरे याद दिलाती हैं उन पलों कि जो पहाड़ कि खूबसूरती पर मर मिटा और दिल से हमेशा के लिए पहाड़ का हो गया ।
अटल के लिए यहाँ के पहाड़ आज भी धड़कते हैं।











शुक्रवार, 12 जून 2009

गजल

कुडियां
कुडियां बाद जे जामियाँ कुडियां ।
जम्दियाँ ही नी गमियां कुडियां ।।
फि मुंडूआं दियां मंगियाँ मनतां ।
पेटा बिच फिरि कमियां कुडियां ।।
हन मुंडू जिहना घरांदे बर्लू ।
उना घरां दियां थमियाँ कुडियां ।।
जे कर्जे तारे कचिया उमरां
बणदियां आइयाँ अमियाँ कुडियां ।।
क्या सौरे , तां क्या प्योके ।
जीतू गेइयाँ रलियाँ कुडियां ।।
जां मिल्ले कुडियां जो मौके ।
भरन उड़ाराँ लम्बियां कुडियां ।।
.........भावुक .......

शेयर

किरायेदार
अपने तो साहिल भी रहे हैं मझधारों की तरह ।
खाए हैं यहाँ गुलों से भी जख्मखारों की तरह ।।
दौरे वक्त की हम पे बंदिशें तो देखो कि ,
अपने घर में भी रहे तो किरायेदारों की तरह ।।
............... भावुक.....................

गुरुवार, 11 जून 2009

गजल

गाँधी के हिस्से में गोली ही क्यों आती है

हर गाँधी के हिस्से में गोली ही क्यों आती है।
अमन के हर पुजारी की क्यों छलनी होती छाती है।।

नींद में चलने वालों का जब कुनबा बढता जाता है,
कोई हस्ती आती है जो नींद से हमें जगती है।।


नई नस्ल के वारिसों इतिहास उठा कर देखो तो ,
नमन शहीदों को कर के आँखें नाम हो जाती है।।

बेकार कभी जाती नहीं सूरमाओं की शहादतें ,
कौम को बलिदान का इक रास्ता दिखलाती है।।

चंद वीरों के दम पर वजूद है जिन्दा कौम का,
लोरिओं में नतिओं को नानियाँ सुनती हैं ।।






गजल

सच नीलाम हो रहा
तेरा भी काम हो रहा, है मेरा भी काम हो रहा।
चर्चा यह आम हो रहा कि सच नीलाम हो रहा।।

बेटा बसा है शहर में गांव् से बड़ी दूर ,
सालों से फोन पर ही दुआ सलाम हो रहा। ।

अ़ब हर नसीहत पर तय हुई तकरार भी,
रुतबा गया बाप का,बेटा जवान हो रहा।।

मसलों के नाम पर असलहे से लड़ी सरहदें,
दिन ब दिन जहाँ मैं जीना हरम हो रहा।।
.............भावुक...............

गजल

याद


चाहतों के मौसम
मेरे सवाल बाकि हैं,तेरे जबाब बाकि हैं।।
पिछले जनम के कुछ हिसाब बाकि हैं।।

आज भी जवान हैं चाहतों के मौसम
तभी तो किताबों मैं सूखे गुलाब बाकि हैं ।।
................भावुक ...............

बुधवार, 10 जून 2009

गुरुवार, 4 जून 2009

मैं और मेरे अपने

मैं और मेरे अपने :
मुझे जो ताकत देते हैं। अकेले चलने का होंसला देते हैं







भावुक , नारायण और प्यारे लाल बाडाली ।









बुधवार, 3 जून 2009

अपने घर लोटेंगी पचास हेरिटेज पेंटिंग



अपने घर लोटेंगी पचास हेरिटेज पेंटिंग
काँगड़ा कलम की फनकारी का एक एतिहासिक दस्तावेज सात साल की कवायद के बाद आख़िर अपने घर लौट रहा है। नेशनल मयूसियम दिल्ली से पचास हेरिटेज पेंटिंग को काँगड़ा मयूसियम धर्मशाला को सोंपने पर सहमती हो गई है। इस सिलसिले में प्रदेश के भाषा विभाग के निदेशक प्रेम शर्मा ने दिल्ली में समझोते पर साइन किए। इन पेंटिंग्स में काँगड़ा, बसौली , बिलासपुर व् चंबा शेली की पेंटिंग शामिल है। प्रदेश सरकार की और से वर्ष २००२ से इन पेंटिंग को लेन की कोशिश चल रही थी। सात साल के बाद घर आ रही हिमाचल की इन धरोहरों का बाकायदा बीमाकरवाया गया है ।इन को काँगड़ा कला संग्राहलय में रखने की पूरी व्यवस्था कर दी गई है । २२ डिग्री तापमान तथा ५० से ५५ प्रतिशत नमी की व्यवस्था की गई है । सितम्बर में पेंटिंग धर्मशाला पहुँच जाएँगी। प्रदेश का भाषा विभाग सितम्बर में काँगड़ा मयूज़ियम में पेंटिंग पर नेशनल स्तर का सेमिनार का भी आयोजन करने जा जहा है। इस आयोगं में नेशनल मयूज़ियम नइ दिल्ली का सहयोग मिलेगा ।विभाग ने जनजातीय अकादमी बडोदा के साथ समझोता किया है। इस समझोते के तहत सिरमौर जिला के जमता में हिमालयन स्टडीज रिसर्च सेण्टरनिर्माण किया जाएगा। यहाँ फोक , आर्ट, कल्चर व् संगीत पर रिसर्च होगी । यह इंदिरा गांधी नेशनल ओपन विशवविध्यालय का सेण्टर फॉर एक्सीलेंसी होगा और यहाँडिप्लोमा कोरस चालाये जायेंगे। यह सेण्टर २०१० में शुरू होगा। सरकार ने इस के लिए पचास बीघा लैंड अलॉट कर दी गई है।







छोटी काशी के चप्पे चप्पे से वाकिफ हैं गधे


हुस्न पहाडों का

हुस्न पहाडों का : दुल्हन सी सजी काँगड़ा घाटी।
फोटो : संजीव कौशल








रविवार, 31 मई 2009

त्रियुंड : जन्नत ही जन्नत


त्रियुंड : जन्नत ही जन्नत
झमाझम बारिश के बीच ट्रैकिंग। इस रोमांच से भीगने के लिए हमने चुना हिमालय की धौलाधार पर्वत श्रृंखला का एक छोटा-सा ट्रैक 'त्रिउंड', जो करीब दस हजार फुट की ऊँचाई पर है। कभी टिपटिप बारिश तो कभी तेज बौछारों के बीच फिसलन भरे पहाड़ी रास्तों पर एक-एक कदम जमाने की जद्दोजहद ने हिमाचल प्रदेश में धर्मशाला से ऊपर इस ट्रैक को यादगार बना दिया। हालाँकि यह ट्रैक लंबा भी किया जा सकता है अगर लाका और बर्फीले इंद्रहार दर्रा पार करते हुए

चंबा की ओर बढ़ा चला जाए, लेकिन बारिश में फिसलन भरे रास्ते के बाद, हो सकता है, आप भी हमारी तरह ऊपर चोटी की बर्फ देखने के बजाय एक रात अपने तंबू या अधपक्के घर में बादल की गर्जन-तर्जन महसूस करने के लिए रुक जाएँ।इस ट्रैक का सफर शुरू होता है मैक्लोडगंज से जो तिब्बत की निर्वासित सरकार की राजधानी है। दलाई लामा की पीठ होने के चलते यह दुनिया भर के बौद्धों के लिए आस्था का एक प्रमुख केंद्र है। बौद्ध मठों और बौद्ध भिक्षुओं की इस नगरी से ही खुलता है त्रिउंड का रास्ता।
यह रास्ता आपको मेघालय के चेरापूँजी की याद दिलाता है जिसे कुछ समय पहले तक सबसे अधिक बारिश के लिए जाना जाता था। ऊपर त्रिउंड पहुँचते-पहुँचते दिन ढलने लगा था। ठंड और बारिश बढ़ गई थी। बादल खूब गरज रहे थे और चोटी पर बिजलियों का घेरा था।
इस पूरे ट्रैक में आपको सुनाई देती हैं बौद्ध मठों की घंटियों की मधुर ध्वनि, जो धुंध और नीचे उतर आए बादलों की सतह पर तैरती प्रतीत होती है। मैक्लोडगंज का एक बड़ा आकर्षण है भगसू फॉल्स और भगसू मंदिर। ठीक झरने के ऊपर से शुरू होता है 'त्रिउंड ट्रैक'। जब हमने अपना ट्रैक शुरू किया तो धीमी-धीमी फुहार पड़ रही थी, जो पूरे रास्ते कभी बहुत तेज तो कभी हलकी होती रही, लेकिन थमी नहीं।रास्ते भर हाथों में छाता और कंधे पर टंगे सामान को पन्नी से कसकर बाँधने के बावजूद हाथ-पैर नम से लगने लगते हैं। बारिश के चलते रास्ता ठीक से दिखता नहीं, पैरों का संतुलन गड़बड़ाता है। फिसलन इतनी है कि एक कदम गलत पड़ा और सैकड़ों फुट नीचे खाई में। ऐसे रास्ते पर छाते को थामे हुए चलना टेढ़ी खीर है। यह रास्ता आपको मेघालय के चेरापूँजी की याद दिलाता है जिसे कुछ समय पहले तक सबसे अधिक बारिश के लिए जाना जाता था। ऊपर त्रिउंड पहुँचते-पहुँचते दिन ढलने लगा था। ठंड और बारिश बढ़ गई थी। बादल खूब गरज रहे थे और चोटी पर बिजलियों का घेरा था। लगने लगा कि रात इन्हीं के साथ बीतेगी। त्रिउंड में रुकने के लिए सिर्फ वन विभाग का एक गेस्ट हाउस है, जो एक स्थायी इंतजाम है। वहाँ चोटी के पास थोड़ी-सी जगह समतल है जहाँ हमने बारिश और तेज हवा के बीच अपने टेंट गाड़े। तंबू के भीतर बैठे हम शमशेर बहादुरसिंह के शब्दों को याद कर रहे थे- "काल तुझसे होड़ है मेरी।" इस तरह से रात कटी और सुबह जब बाहर निकले तो चारों तरफ का नजारा इतना मासूम था कि लग ही नहीं रहा था कि रात क्या वलवला था। ऊपर बर्फ से ढँकी चोटियाँ और नीचे दिलकश घाटी। लौटते हुए मैक्लोडगंज और रास्ते में बने बौद्ध मठों की घंटियाँ यह आभास दिलाती रहीं कि निर्जन वन में कहीं दूर ही सही कोई है।

मछली का शिकार करने पर होगी तीन वर्ष कैद

मछलियों का शिकार करने वालों की खैर नहीं। मत्स्य विभाग ने मछली पकड़ने वालों पर शिकंजा कसने के लिए कमर कस ली है। प्रजनन काल में अगर शिकारियों ने मछली का शिकार किया तो उन्हें तीन वर्ष की सजा भुगतनी पड़ेगी। अगर मौके पर पकड़े गए तो तीन हजार रुपये जुर्माना देना होगा। मत्स्य प्रजनन काल में जिले के सभी नदियों व जलाशयों में जून से जुलाई तक मछली के शिकार पर रोक रहेगी। प्रजनन काल के दौरान कोई व्यक्ति मछली का शिकार करता पकड़ा गया तो उसे उक्त दोनों सजाएं एक साथ हो सकती हैं। मत्स्य विभाग ने इसे गैर-जमानती अपराध भी करार दिया है। प्रजनन काल के दौरान शिकारियों की धरपकड़ के लिए मत्स्य विभाग ने विशेष दस्तों का गठन किया है। यह दस्ते दिन-रात नदियों व जलाशयों पर चौकसी रखेंगे।
गौर हो कि मत्स्य प्रजनन काल के दौरान शिकारी धड़ल्ले से मछली का शिकार करते हैं व बाजार में मुंह मांगी कीमत वसूलते हैं। नदियों की दूरी लंबी होने के कारण अकसर शिकारी विभाग के गार्डो की आंखों में धूल झोंककर अपने मंसूबों को अंजाम देते हैं। प्रजनन काल में मछली का शिकार होने से इनकी संख्या में भारी कमी आ जाती है। मत्स्य विभाग ने इस बार मछली के अवैध शिकार को रोकने के लिए कमर कस ली है।
प्रजनन काल में मछली का शिकार अवैध
मत्स्य विभाग के सहायक निदेशक सतपाल मेहता ने कहा कि प्रजनन काल में मछली का शिकार अवैध है। इस दौरान शिकारियों पर नजर रखने के लिए विभाग ने पूरी तैयारी कर ली है। प्रजनन काल के दौरान मत्स्य पालन करने वालों को जानकारी देने के लिए विभाग शिविरों का आयोजन भी करता है।

मंडी में बाप के हत्यारे को उम्र कैद

फास्र्ट ट्रैक कोर्ट मंडी के पीठासीन अधिकारी टीएस कायस्थ की अदालत ने दीपराम निवासी बाह सरकाघाट पर बाप की हत्या का आरोप सिद्ध होने पर उसे उम्र कैद की सजा सुनाई है।
इसके अलावा 5 हजार रुपए जुर्माना व इसे अदा न करने की सूरत में उसे एक साल की अतिरिक्त कैद का भी फरमान सुनाया है। वहीं आईपीसी की दो अन्य धाराओं के तहत उसे 2-2 साल का साधारण कारावास व एक-एक हजार रुपए जुर्माने की सजा सुनाई है।
सजाएं साथ-साथ चलेंगी। 31 जनवरी 2008 को दीप राम व उसके पिता तेगू राम की आपस में किसी बात को पिता पर पत्थर से वार कर दिया था जिससे पिता की मौत हो गई थी।

सुखराम ने लिया सक्रिय राजनीति से संन्यास

मंडी. पूर्व केद्रीय मंत्री और प्रदेश की सियासत के चाणक्य कहे जाने वाले कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पंडित सुखराम ने गुरुवार को सक्रिय राजनीति से संन्यास ले लिया। सुखराम ने कहा कि उन्होंने अपनी राजनीतिक विरासत बेटे अनिल शर्मा के लिए सहेज कर रखी।
अनिल हमेशा उनकी कमजोरी रहे। लोस चुनाव में अनिल ने सदर से लीड दिलाकर दिखा दिया कि वह राजनीति में जम गए हैं। सुखराम ने कहा कि सियासी मजबूरियों के चलते उन्हें अलग पार्टी बनानी पड़ी।
हालांकि उस समय भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी ने अनिल शर्मा को राज्यसभा सदस्य के तौर पर भाजपा की सदस्यता लेने को कहा था, लेकिन उन्होंने इसे विनम्रता से ठुकरा दिया। उन्होंने माना कि वीरभद्र सिंह से उनके नीतिगत मतभेद रहे। व्यक्तिगत मतभेद कोई नहीं था।
अपने आवास पर वीरवार को पत्रकार वार्ता में कांग्रेस सुखराम ने कहा कि पिछले कार्यकाल में आनंद शर्मा की परफॉर्मेस के कारण ही उन्हें पदोन्नति दी गई। वीरभद्र सिंह को उनकी योग्यता और अनुभव के कारण कैबिनेट में लिया गया है। केंद्रीय मंत्रीमंडल में दो कैबिनेट मंत्री बनाकर कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने प्रदेश के लोगों पर बहुत बड़ा एहसान किया है।
डिंग मंडी (सिरसा) क्षेत्र के जोधकां गांव के राजकीय सीनियर सेकंडरी स्कूल में शिक्षकों द्वारा ब्ल्यू फिल्म देखने के मामले में स्कूल के 10 शिक्षकों को सस्पेंड कर दिया गया है। इसके अलावा प्रिंसिपल ज्ञानचंद कंबोज को छोड़ कर समूचे स्टाफ को भी बदल दिया गया है।
डीईओ ने मामले की रिपोर्ट शिक्षा निदेशालय को भेज दी है। गत दिवस स्कूल में चार शिक्षकों को ब्ल्यू फिल्म देखते हुए गांव के लोगों ने पकड़कर एक अन्य कमरे में बंद कर पुलिस को सूचित कर दिया था। पुलिस ने मौके पर पहुंच आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया था।
पूछताछ के दौरान पुलिस को मामले में तीन अन्य शिक्षक व एक दुकानदार के भी शामिल होने का पता चला। उनके खिलाफ भी केस दर्ज किया गया है। उधर, नाराज ग्रामीणों ने हंगामा किया और हाईवे पर जाम भी लगाया।
सिरसा की जिला शिक्षा अधिकारी आशा किरण ग्रोवर ने बताया कि ब्ल्यू फिल्म देखने के प्रकरण में शिक्षा निदेशालय के निर्देशानुसार उक्त स्कूल के 10 शिक्षकों गुरमीत, जनकराज, सुरेश गिरी, सतपाल, राजकुमार, रवैल सिंह, मूलचंद के अलावा शुक्रवार को स्कूल से गैरहाजिर रहे तीन अन्य शिक्षकों संजीव कुमार, राजपाल व चंद्रजीत को सस्पेंड कर दिया गया है।
प्रिंसिपल ज्ञानचंद कंबोज को छोड़ कर स्कूल के पूरे स्टाफ का दबादला कर दिया गया है। इसके साथ ही मामले की और गहन जांच के लिए जांच समिति भी गठित की गई है। इस समिति में उप जिला शिक्षा अधिकारी गुरदेव सिंह, बीईओ यज्ञदत्त वर्मा व राजकीय सीनियर सेकंडरी स्कूल गुड़ियाखेड़ा के प्रिंसिपल जसपाल सिंह को शामिल किया गया है।
जांच रिपोर्ट के बाद अगली कार्रवाई की जाएगी। थाना डिंग के प्रभारी रामरूप ने बताया कि इस मामले में शेष आरोपियों रवैल सिंह, राजकुमार, मूलचंद व दुकानदार सतीश अभी तक पुलिस की गिरफ्त में नहीं आए हैं। पुलिस उनकी तलाश में जुटी है।
इस मामले में गिरफ्तार किए गए चार शिक्षकों गुरमीत, जनकराज, सुरेश गिरी व सतपाल को ड्यूटी मजिस्ट्रेट सुखजीत सिंह की अदालत में शुक्रवार को पेश किया गया। अदालत ने उनको जमानत पर रिहा कर दिया।

हिमाचल ने दिए प्यार के फूल

मंडी. बेशक प्रदेश में वेलेनटाइन-डे का अभी ज्यादा क्रेज न हो, लेकिन वेलेनटाइन डे के चलते हिमाचली फूलों की भारी मांग है। हिमाचल में फ्लोरीकल्चर का कारोबार 26 करोड़ के पार हो गया है। इस व्यवसाय से प्रदेश के 2500 परिवार जुड़े हैं। प्रदेश में 584 हैक्टेयर में फूलों की खेती की जा रही है। प्रदेश के सभी जिलों में इस व्यवसाय से लोग जुड़ रहें हैं। प्रदेश की ठंडी जलवायु, नमीयुक्त भूमि और आद्र्रता को इसके लिए उत्तम माना गया है। पॉलीहाउस में पूरे साल इनका उत्पादन किया जा रहा है। प्रदेश में विदेशी फूलों का कारोबार 1992-93 में शुरू हुआ। इसमें सबसे पहले सोलन, शिमला, कांगड़ा और चंबा में इसका उत्पादन शुरू हुआ। इसके बाद हर साल उत्पादन बढ़ता गया।...

शुक्रवार, 29 मई 2009

गजल

वीरभद्र लोहा ढूंढ़ के लायेंगे और आनद शर्मा इंडस्ट्री लगायेंगे

केंद्रीय मंत्री मंडल में विभागों के वितरण के बाद हिमाचल के बारे में येही कहा जा सकता है की पहले वीरभद्र लोहा ढूंढ़ के लायेंगे और आनद शर्मा इंडस्ट्री लगायेंगे वीरभद्र सिंह को मंत्रिमंडल विस्तार में इस्पात मंत्री का मंत्रालय दिया गया है जबकि आनंद शर्मा को वन्निज्य के साथ उद्योग विभाग की जिमेवारी भी दी गयी है ऐसे में यह कहा जा सकता है की अगर विर्भादर कोइऊ सपना देखेंगे तो उसे पुरा करने के लिए आनद शर्मा के पर लगाने होंगे मतलब की अगर वीरभद्र सिंह लोहा धुंध कर कहीं से लेट भी हैं तो उसे लगनी की अनुमति आनद शर्मा से लेनी होगी

गुरुवार, 28 मई 2009

राजा का सूर्य उदय, पंडितजी का सूरज अस्त



राजा का सूर्य उदय, पंडितजी का सूरज अस्त
दखल : विनोद भावुक
प्रदेश में कांग्रेस की सियासत में साथ साथ शुरुआत करने
वाले दो दिग्गज इस लोकसभा चुनाव के बाद अलग
दिशाओं की और चलने शुरू हो गये हैं ।
की ऊम्र में जहाँ सुखराम अपनी पारी को समेटने की
घोषणा कर रहे हैं तो वीरभद्र सिंह ७५ साल की ही उम्र में
सियासत की नयी पारी की एक बार फ़िर से धमाकेदार
शुरुआत कर रहे हैं । दिल्ली की सरकार में राजा का
केबिनेट मंत्री बनाना उनके सियासी जलवे की झलक
भर है । राजा का एक बार फ़िर से सूरज उदय हो रहा
है उधर पंडित सुखराम की सियासत का सूरज अस्त
हो रहा है ।


मंगलवार, 26 मई 2009

संस्मरण :न्यूयार्क नहीं नगरोटा

पुष्पांजलि
दो शब्द प्रेम के लिए
उसे लोगों को पढने का हुनर आता था ।
दरबारी सरकारी संस्कृति में आम आदमी
का पिसना उसे अंदर तक आहत कर
जाता था । एक ऑफिसर के रूप में
डॉक्टर प्रेम भरद्वाज अपनी बिरादरी के
सताये आम आदमी दा दर्द बाँटते मिलते थे
तो एक शायर अपने लफ्जों को आम आदमी
की जुबान में बिना लग लपेट के कहता
दिखता है । यह वही आदमी है जिसकी
अदा का कायल अगर भरमौर है तो डलहौजी
में भी उसकी कलम का कारोबार चलता है ।
छोटी काशी उस आदमी के काम को बरीकी
से देखती है । प्रेम का कारवां कहाँ कहाँ से
गुजरते हुए कहाँ कहाँ तक जा पहुंचता है ।
इस प्रेम में न्यूयार्क की नहीं नगरोटा की
हसरत है ।नौकरी पूरी हुई, बच्चों की शादियाँ
कर दी । अब उस जगह का हक़ अदा करने
का वक़त आ गाया। नगरोटा में प्रदेश का कल्चर
सेंटर विकसित हो इसी पर रात दिन मंथन व्
चिंतन चल रहा था । शुरू आत हो चुकी थी ।
इसी बीच प्रेम की प्यास जगा कर वो शख्स ख़ुद
किसी दूसरी दुनिया में प्रेम का अलख जगाने
निकल गया । काश कोई प्रेम की प्यास को
समझे और नगरोटा में प्रेम की अगन जगाये।
आगे फ़िर कभी ..........................

गजल

साफा

नजर ओआदा मुक्दा साफा ।

टोपिया पिचे लुक्दा साफा ।।

गरीब प्यो कूदी बिहानी ।

दरेली दरेली झुक्दा साफा ।।

बुम्बल बड़े सजाये कुद्मन ।

आदर खा तर पूछ दा साफा ।

सफेयाँ सफेयाँ फरक बटेर ।
इक लूटें , इक लुत्दा साफा ।।

पग परं बिच पोंडी आई ।

जह्लू जह्लू रुस्दा साफा ।।

हटिया भठिया गोरान गलियन ।

बस गरीबन जो मुछ्दा साफा ।।

लग जोग भी देना पांडे ।

ना इ बोलें कुस्दा साफा ।

गजल


लीडर
जित्ते बेशक हारे लीडर ।
इको दे ही सारे लीडर ।।

जिथु मौका जाह्लू मिला ।
खाई जांदे चारे लीडर ।।

भीड़ चलाना पोंदी सोगी ।
खूब लगांदे लारे लीडर ।।

जिते तां नजर नि ओंदे ।
रहंदे टारे टारे लीडर।।

अकड़ जाह्लू ओना लगें ।
करना पोंदे टारे लीडर ।।




गजल

गजल


सनका ने ही होनियाँ गला

बिच रास्तें परकाला पोना।
सफरें जे तरकाला पोना।।

नोटां वाले होना लग्गे ।
हुण आखां पर जाला पोना ।।

धुंध बरसाती पोंदी आई ।
रुत बद्लोनी पाला पोना ।।

पहलें खूब बनाये चेले ।
हुन गुरुआ ने पाला पोना ।।

ठगी ठोरी चलदी रहनी ।
जाहलू तक है गाला पोना ।।

सनका ने ही होनियाँ गला ।
जे मूमे पर ताला पोना ।।











गजल

गजल



गद्देयां बोझे डोंदे रहना

कितना की फनोंदे रहना ।
काहलू तक दबोंदे रहना ।।

घोडेयां दोडाँ जीती लेइयाँ ।
गद्देयां बोझे डोंदे रहना ।।

हकां तांइ लड़ना पोना ।
नि मिलने जे रोंदे रहना।।

टब्बर बड़ा छपर छोटा।
बूडे बड़े संगोंदे रहना ।।

नी जादा भी रोंदे रहना ।
कितना की ठगोंदे रहना।।

बाबेयां माला जप्देयाँ रहना।
चोरा खीसे तोह्न्दे रहना ।।

गजल


चिडियां जो दाणा चाहिदा

बस मुंह ही नि फुलांना चाहिदा .
कदी सिर भी झुकाना चाहिदा ।

कदी सुख दुःख भी लाना चाहिद।
कोई तां अपना बनाना चाहिदा ।।

बन ही नी कटाना चाहिदा ।
कोई बूटा भी लाना चाहिदा।।

हल्ला ही नी पाना चाहिदा ।
कदी हथ भी बंडाना चाहिदा।।


कोई रुसदा मनाना चाहिदा ।
कोई रोंदा हंसाना चाहिदा ।।

कदी दिल भी लगाना चाहिदा ।।
कदी मिटना मिटाना चाहिदा ।।

खाना भी कुछ बचाना चाहिदा।
थोडा दान पुन कमाना चाहिदा।।

नाचना भी कने नचाना चाहिदा ।
पहलें तां गाना बजाना चाहिदा।।

कोई सपना सजाना चाहिदा ।
कोई बंजर बसाना चाहिदा ।।

कुत्ते जो तां मठुनी चाहीदी
चिडिया जो भी दाणा चाहिदा ।।

रविवार, 24 मई 2009

गजल


चाचा

लगेया जीणा मरणा चाचा ।
मरणे ते क्या डरना चाचा ।।
शेर बणी के जीणा चाचा ।
भेड़ बणी नी मरणा चाचा ।।
हथ पैर भी हलाना पौने
रोज नी बूता सरना चाचा ।।
मरने बाद भी जिन्दा रहंदे ।
ऐसा कम कोई करना चाचा ।।
लश्कें गद्कें बेशक जिन्हा ।
पर नी लगदा बरना चाचा ।।
मश्केरा ने भारियाँ बीडाँ ।
पानिये सारें झरना चाचा ।।
आली बिच ही मारदा चुबीअं ।
कदी तां पतना तरना चाचा ।।
दफ्तर - दफ्तर बहरे टोने ।
देना पोना हुन धरना चाचा ।।
गल गठी नें बणी रखनी ।
जे करना सेह भरना चाचा ।।

शनिवार, 23 मई 2009

दुविधा में राजा, टेंशन में प्रजा


मंडी से कांग्रेस के सांसद बने राजा वीरभद्र सिंह केंद्र सरकार में मंत्री नहीं बन पाए , इस बात को लेकर हिमाचल में कांग्रेस से ग्रासरूट से जुड़े कार्यकर्ता बुरी तरह से हतोत्साहित हैं। हालाँकि हिमाचल के कोटे से केबिनेट में झंडी पाने वाले आनंद शर्मा पिछली मनमोहन सरकार में मिनिस्टर फॉर स्टेट थे और नेशनल लीडर के रूप में उनकी पहचान होती है लेकिन उनका नाता प्रदेश के वोटरों से ज्यादा दस जनपथ के साथ है। दूसरी और वीरभद्र प्रदेश में कांग्रेस के सबसे बड़े मॉस लीडर माने जाते है। मंडी की लडाई अपने बलबूते जीतने वाले वीरभद्र सिंह के बारे में पार्टी आलाकमान के कान भरने का सिलसिला लंबे अरसे से चल रहा है। अपनी ही पार्टी में उनके विरोधी दिल्ली दरबार में अपना काम करने में कामयाब रहे हैं । राज्यसभा सांसद आनंद शर्मा के मुकाबले कुर्सी की दौड़ में लोकसभा सांसद की स्टेट का सबसे सीनियर लीडर होने की योग्यता नजरअंदाज हो गई है । प्रदेश में पार्टी संगठन के साथ के बावजूद उनके दावे का खारिज होना यहाँ उनके वफादारों को अखरने लगा है। ऐसे में जहाँ वीरभद्र ने दिल्ली में चुपी साध रखी है वहीँ अपने समर्थकों को भी अभी तक जुबान बंद रखने की हिदायत दी है । दरअसल मंगलवार को होने वाले केबिनेट विस्तार से पहले वीरभद्र सिंह कोई विवाद खडा नहीं करना चाहते हैं। उन्हें उम्मीद है कि केबिनेट विस्तार में उनके दावे पर आलाकमान विचार कर सकता है दावे को मजबूत करने के लिए वीरभद्र सिंह हर सोर्स को लोबिंग कर के लिए प्रयोग कर रहे हैं ।
सरवाइवल कि लडाई लड़ रहे वीरभद्र को अगर विस्तार में उनके कद के मुताबिक पोस्ट नहीं मिलती है तो प्रदेश कांग्रेस में आर पार कि लडाई तय है । अगर एसा होता है तो हिमाचल में नुकसान कांग्रेस का ही होगा।

शुक्रवार, 6 मार्च 2009

शुक्रिया! लिकर किंग

सौ करोड़ भारतीयों की भावनाएं आख़िरकार अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर में तार तार होने से बच गई। लिकर किंग के नाम से मशहूर बिज़नेसमैन विजय माल्या ने राष्ट्रपिता की पीतल की प्लेट-कटोरी, चप्पल, घड़ी और ऐनक दूसरे देश जाने से बचा ली। बापू की इस अमानत की नीलामी जब सरकार नहीं रोक पाई, तो माल्या ने इनकी सबसे बड़ी बोली लगाकर इन्हें खरीद लिया।
बापू पूरा जीवन सीना तान के चले। तब भी जब अंग्रेजों ने दक्षिण अफ्रीका में उन्हें रेल के डिब्बे से बाहर फेंक दिया। तब भी जब बिहार में नील के खेती करने वालों को उन्होंने उनका हक़ दिलाया। और, तब भी जब नाथूराम गोडसे की पिस्तौल उनके सीने के सामने तन चुकी थी।

बस बापू का सिर झुक जाता था तो गरीब देशवासियों की लाचरगी देखकर, उनकी गरीबी देखकर और उनकी आंखों में पलने वाले सपनों को चकनाचूर होते देखकर। मोहनदास करमचंद गांधी को सुभाष चंद्र बोस ने बापू कहा। देशवासियों से खून मांगने वाले एक सेनानी का अहिंसा को सबसे बड़ा हथियार बताने वाले दूसरे सेनानी को दिया गया ऐसा सम्मान कि पूरे देश ने साबरमती के इस संत को अपना बापू मान लिया।
बापू का पूरा जीवन विरोधाभासों से घिरा रहा। वो पूरे देश के बापू थे, लेकिन उनका अपना बेटा उनके सिद्धांतों का बाग़ी हो गया। बापू की प्रतिमा से चंद कदमों की दूरी पर संसद में बहस के नाम पर करोड़ों फूंक देने वाले तमाम नेताओं ने बापू से शायद ही कुछ सीखा हो। लेकिन सौ करोड़ भारतीयों की उम्मीदों पर पानी फिरने से बचाने का काम एक ऐसे शख्स ने किया, जिससे शायद बापू जिंदा होते तो कन्नी काटकर निकल जाते। जी हां, एक शराब का सबसे बड़ा विरोधी और दूसरा देश का लिकर किंग।
चांद पर तिरंगा लहराने वाले सौ करोड़ भारतीयों के पास अपने बापू की घड़ी, उनकी ऐनक, उनकी पीतल की कटोरी प्लेट और उनकी चप्पलें जल्द वापस आएंगी। सरकार जहां चूक गई, वहां कारोबार जगत के एक नुमाइंदे ने देशवासियों की उम्मीदें सांसत में फंसने से बचाईं। माल्या पहले भी टीपू की तलवार हिंदुस्तान ला चुके हैं। शुक्रिया, लिकर किंग। आपकी तिजोरी से कम हुए 18 लाख डॉलर, सौ करोड़ हिंदुस्तानी फिर भी चुका सकते हैं, लेकिन, बापू की विरासत बचाने की जो कीमत है, उसे अशर्फियों से भी नहीं तौला जा सकता।

कुंवारों में नसबंदी कराने का चलन शुरू

अब भारत के कुंवारों में नसबंदी कराने का चलन शुरू हो चुका है। कुंवारों द्वारा नसबंदी कराने के मामले प्रकाश में आने के बाद अब सख्ती का फैसला हुआ है। नसबंदी अब तभी होगी जबकि पति-पत्नी साथ आएंगे या लड़के के साथ मां या पिता होंगे। पता चलने पर कुंवारों को भगा दिया जाता है, लेकिन कोई झूठ ही बोले तो कुछ नहीं हो सकता। चूंकि नसबंदी खुल जाती है, इसलिए लोग डरते नहीं। डाक्टरों के अनुसार पुरुष नसबंदी में 15 मिनट का समय लगता है, जबकि खुलवाने में 3 घंटे लगते हैं। नसबंदी खुलवाने के लिए परिवार की रजामंदी जरूरी है।

कुछ लोग नसबंदी के बदले मिलने वाले रुपये के लिए आपरेशन करा रहे हैं तो कुछ ऐसे कुंवारे भी आपरेशन कराने पहुंच रहे हैं जिन्हें अपनी महिला दोस्त के साथ शारीरिक संबंध बनाने हैं लेकिन दोस्त तैयार नहीं और पहले आपरेशन का सुबूत चाहती है। चौंक गए ना? दिल्ली के अस्पतालों में आए दिन दूसरे शहरों के लड़के भी आपरेशन कराने पहुंच रहे हैं। ऐसे ही हैं 21 साल के राहुल सामंत जो अच्छे परिवार से हैं, बड़ी कंपनी में काम करते हैं लेकिन अपनी दोस्त के कहने पर लोकनायक अस्पताल पहुंच गए नसबंदी कराने। डाक्टर ने पूछा तो लापरवाह जवाब था, बाद में खुल जाएगी।
संजय गांधी अस्पताल में पिछले ही महीने 20 वर्षीय प्रदीप कुमार ने आपरेशन करा लिया था। घर वालों को पता चला तो अस्पताल भागे और मां के कहने पर डाक्टरों को नसबंदी खोलनी पड़ी। जागरण में सुनील पाण्डेय लिखते हैं कि अस्पतालों में नसबंदी कराने आने वालों का चूंकि घरेलू रिकार्ड नहीं मांगा जाता, इसलिए कुंवारे इसका फायदा उठा लेते हैं।

फ़िर जेल कब जाओगे?

डाक्टर राजेन्द्र प्रसाद जब पटना सदर जेल में थे, तब श्री गोडबोले के आदेश से कई डाक्टरों ने उनकी जांच की। इससे धीरे-धीरे उनकी सेहत में सुधार आने लगा। कुछ दिन बाद निकट के सम्बन्धियों से मुलाक़ात की सुविधा मिलाने लगी। एक माह में २ मुलाकातें और २ पात्र लिखने की छूट थी। राजेन्द्र बाबू ने पात्र लिखने के बदले मुलाक़ात का विकल्प लिउया। यानी अब माह में ४ मुलाकातें यानी हर हफ्ते मुलाक़ात। मुलाक़ात में पहले केवल ५ लोगों को जाने दिया जाता था। बाद में घरवालों के लिए इसमें थोड़ी छूट मिलाने लगी। बीमारी के कारण राजेन्द्र बाबू से मुलाकातें उनके लिए तय कमरे में होती थी, बाद में वही कमरा उन्हें दे भी दिया गया रहने के लिए। मुलाकातें भी इसी कमरे में होतीं। राजेन्द्र बाबू उस कमरे में १९४२ से १९४५ तक रहे। उनके साथ दूसरे बड़े लोग, जो वहाँ कैद करके लाये गए थे, वहीं उनके साथ रहे। उनकी देखभाल के लिए पहले बाबू मथुरा प्रसाद और बाद में श्री चक्रधर शरण वहीं रखे गए। हजारीबाग जेल से पारी-पारी कई अन्य मित्रों को भी सरकार वहाँ ले आई।मुलाक़ात के लिए सारा परिवार, जो उस दिन पटना में होता, जाता। ५ की गिनती में बच्चे नहीं आते थे। १९४२ में राजेन्द्र बाबू का पोता अरुणोदय प्रकाश लगभग एक साल का था। वह भी जाता था। धीरे-धीरे वह चलने और दौड़ने लगा। जेल के फाटक पर पहुंचाते ही उसे खोलने के लिए शोर मचाने लगता। अपनी तोतली जुबां में पुलिस को दांत भी लगाता। फाटक खुलते ही वह सीधा राजेन्द्र बाबू के कमरे की दौड़ लगाता। वह उसे ही अपने बाबा का घर समझ बैठा था। जेल में बच्चों को २-३ बार मिठाईयां मिलीं। फ़िर क्या था, बच्चे वहाँ पहुंचाते ही खाने-पीअने की फरमाइशें शुरू कर देते। राजेन्द्र बाबू भी मुलाक़ात के दिन पहले से ही इसका प्रबंध करके रखते।बच्चों को सप्ताह में एक बार बन-संवर कर जेल जाने की आदत पड़ चुकी थी। इसे वे सैर-सपाटे का एक हिस्सा मानने लगे थे। इसमें मिठाई का भी काफी लोभ थाजब १९४५ में राजेन्द्र बाबू छूटकर घर आए तो उनके पोते को बड़ी खुशी हुई। फ़िर जब उसके जेल जाने यानी सैर का दिन आया तो उसे न कोई बाबा के घर (जेल) ही ले गया और ना ही किसी ने उसे मिठाई ही दी। तब उसे बाबा का घर आना रुचा नहीं। तीसरे-चौथे दिन तो उसने पूछ ही लिया -" बाबा, फेर जेल कब जैईब'?

जब मैं पैदा हुई तो मुझमें दोष था क्योंकि मैं लड़की थी

अनीता वर्मा ने नए संग्रह 'रोशनी के रास्ते पर' से एकाध कविताएं यहां हाल में आप पढ़ चुके हैं. मैं जितनी बार इस किताब को पढ़ता हूं जीवन और कविता पर मेरा विश्वास गहराता जाता है. अनीता जी ने इस किताब में वाक़ई जादू किया है. जादू करने के लिए कोई जतन नहीं लगाया है, चीज़ों को और भी सादगी नवाज़ी गई है. मैं इस संग्रह से आपको अभी कई उल्लेखनीय चीज़ें पढ़वाऊंगा. इस सीरीज़ में फ़िलहाल ये दो कविताएं और प्रस्तुत हैं:
दोष
जब मैं पैदा हुई तो मुझमें दोष थाक्योंकि मैं लड़की थीजब थोड़ी बड़ी हुई तब भी दोषी रहीक्योंकि मेरी बुद्धि लड़कों से ज़्यादा थीथोड़ी और बड़ी हुई तो दोष भी बड़ा हुआक्योंकि मैं सुन्दर थी और लोग मुझे सराहते थेऔर बड़ी होने पर मेरे दोष अलग थेक्योंकि मैंने ग़लत का विरोध कियाबूढ़ी होने पर भी मैं दोषी रहीक्योंकि मेरी इच्छाएं ख़त्म नहीं हुई थींमरने पर भी मैं दोषी रही क्योंकि इन सबके कारण असंभव थी मेरी मुक्ति.
रोशनी
उसका नाम रोशनी थाआदिवासी एक लड़कीजिसे बनना था ननवह कभी पागलों सा करतीमोटे लाल पपोटे उसकेजंगली फूलों से दिखतेबोलती तो लकड़ी के दरवाज़े थरथरातेआरियों सी काटती उसकी चीख़
मुझे पता है मेरा अंतयहीं कहीं है वह आसपासफूल-फूल नहीं प्यार नहींमुरझाना है मुझे वसन्त मेंसूरज बनना हैलाल एक पहाड़कोई दो मुझे मेरी नींद
दिलासा एक आसान पत्थर था जिस पर पतक देती वह सरसिस्टर कैथरीन उसे बांहों में भर लेतींरोशनी मेरी बच्ची
कई वर्ष बाद मिली रोशनीमेडिकल कॉलेज मेंवह डॉक्टर बन रही थीअच्छा करेगी वहबच्चों को और स्त्रियों कोबच्चे, स्त्री, ग़रीब रोशनी.

सूरज बुझाकर जब शाम के आँचल से,उस सांवली रात का चेहरा निहारा था,वही सूना पथ था, खुला ह्रदय पट था...और एक लंबा इंतज़ार तुम्हारा था
हवाओं ने हलके से केश बादलों का उडाया था,चाँद भी चन्दनी का हाथ थामे छत पर आया थाइनकी आँखों में छलकता प्यार हमारा था,...और एक लंबा इंतज़ार तुम्हारा था
मिलन की प्यास ले दरिया खिसक कुछ पास आया था,वहीं माझी ने किसी कश्ती से एक गीत उठाया था,बोल सारे नए थे पर भाव वही पुराना था,...और एक लंबा इंतज़ार तुम्हारा था
कई महफिलों में पढ़कर आया था ग़ज़ल तेरे नाम की ,दबी-ज़ुबाँ लोगों ने बज्म में तेरा नाम भी फुसफुसाया था,यूँ तो बात तेरी थी पर तखल्‍लुस हमारा था...और एक लंबा इंतज़ार तुम्हारा था

क्या यही पाकिस्तान है ?

कुछ दिन पहले लाहौर हमले का नया विडियो विभिन्न समाचार चैनलों पर जियो टी वी के सौजन्य से दिखाया गया जो हमले के ११ मिनट के बाद का है । सी सी टी वी कैमरे में कैद इस विडियो में स्पष्ट देखा गया कि हमले को अंजाम देने के बाद बड़े इत्मीनान से ये आतंकवादी लाहौर की गलिओं में घूमते हुए गए बिना किसी खौफ के । विडियो देखने से लग ही नही रहा था कि कोई बहुत बड़ा हादसा हुआ है इस शहर में । कन्धों पर कारतूसों से भरे बैग और हाथ में एके ४७ लिए ये आतंकवादी आराम से घूम रहे हैं और पुलिस नदारद , सब कुछ इत्मीनान , क्या इसी का नाम है पाकिस्तान ? जी हाँ इसी का नाम है पाकिस्तान ........!आईये देखते हैं कैसे ?
एल फॉर लखवी जे फॉर जरारशब्दकोष में नही है प्यारखुनी जमीन, सहमा आसमानइसी का नाम है पाकिस्तान ....!झूठ बोलो -मुकर जाओदामन अपने कुतर जाओख़ुद नही सुधरे मगरआपस में बोले सुधर जाओबी फॉर बैतुलाह के फॉर करारतालीबानी अपने हैं यारसुरक्षित नही मेहमानइसी का नाम है पाकिस्तान.........!हिंसा हीं अपना है धर्मन लज्जा नही कोई शर्मतमंचों से मिल जाती रोटीतो क्यूंकर करें कोई कर्म?एच फॉर हिंसा टी फॉर तकरारकर रहे लोग असलहों से प्यारतमाशबीन हैं हुक्मरानइसी का नाम है पाकिस्तान .....!सपनों का कर दिया खूनलिफाफे से गायब मजमूनन बचपन रहा न जवानीकैसे मनाये हनीमून?के फॉर कियानी वी फॉर वारअसमंजस में है सरकारमगर फ़िर भी है वह इत्मीनानइसी का नाम है पाकिस्तान ...!

जाने क्यों लोग मोहब्बत किया करते हैं

जाने क्यों लोग मोहब्बत किया करते हैं कुछ दिन पहले मैंने अपने छुट-पुट चिट्ठे पर एक चिट्ठी लिनेक्स बनाम वीस्टा एवं मैकिन्टॉश नाम से पोस्ट की। इसमें बीबीसी के एक लेख की चर्चा है। इसमें इन तीनो ऑपरेटिंग सिस्टम की तुलना है। इस पर एक टिप्पणी,
'पता नहीं क्यों हर आदमी माइक्रोसौफ्ट को कोसने में लगा रहता है। सच कहूँ, मुझे तो Windows [से प्यार] ... है। ...मैक पर [हिन्दी में काम करने के लिये] ... एक गन्दे से की-बोर्ड ले-आउट के अलावा कुछ भी नहीं है। ...जो लोग लिनक्स का गुण-गान करते हैं… उनका तो अल्लाह ही मालिक है.... कंसोल में काम करना है तो ठीक है, KDE/ Gnome तो अभी भी कचरा हालत में हैं।'अच्छा सवाल है।
मेरा एक मित्र विंडोस़ प्रेमी है। मुझसे अक्सर कहता है कि मैं लिनेक्स छोड़ कर विंडोस़ अपना लूं। कल ही मेरे इसी मित्र ने एक ईमेल भेजी जो शायद अन्तरजाल में घूम रही है। यह हिन्दी में इस प्रकार है, 'बिल गेटस् प्रति सेकेण्ड २५० यू०एस० डालर अर्जित करते हैं जो कि लगभग 2 करोड़ यू०एस० डालर प्रतिदिन और ७३ अरब यू०एस०डालर प्रति वर्ष होता है।यदि उनसे १००० डालर गिर जाता हैं तो उसे उठाने के लिये वे कष्ट नहीं उठायेंगे क्योंकि सेकेण्ड में वे उसे उठायेंगे और इतने समय में १००० डालर अर्जित कर लेंगे।अमेरिका का राष्ट्रीय कर्ज ५.६२ खरब है, यदि बिल गेटस् को यह ऋण स्वयं चुकता करना हो तो वह इसे १० वर्ष से कम समय में कर देगे।वह पृथ्वी पर प्रति व्यक्ति १५ यू०एस० डालर दान करते हैं तब भी उनके पास जेब खर्च के लिए ५० लाख डालर शेष रह जायेगा।माइकल जार्डन अमेरिका में सबसे अधिक धन अर्जित करने वाले खिलाड़ी हैं। उनकी सम्पूर्ण वार्षिक आय ३०० लाख डालर है। यदि वे खान-पान पर खर्च न करें तो उन्हें बिल गेटस् के बराबर धनी होने में २७७ वर्ष तक इन्तजार करना पड़ेगा।यदि बिल गेटस् एक देश होते तो वे पृथ्वी पर सबसे धनी देश होते।यदि आप बिल गेटस् के सभी धन को एक डालर के नोट में बदलें तो आप धरती से चन्द्रमा तक की दूरी से १४ गुनी लम्बी आने जाने वाली सड़क तैयार कर सकते हैं। किन्तु आपको इस सड़क को बिना रूके १४०० वर्षों में बनाना होगा और ७१३ बोइंग ७४७ जहाज सभी धन के आवागमन के लिये प्रयोग करना होगा।यदि हम कल्पना करें कि बिल गेटस् अगले ३५ वर्षों तक जीवित रहते हैं और यदि वे ६.७८ लाख डालर प्रतिदिन खर्च करें केवल तभी स्वर्ग जाने के पहले वे अपनी सारी सम्पत्ति समाप्त कर पायेंगे।'मुझे यह तो मालुम था कि विंडोस़ दुनिया का सबसे लोकप्रिय ऑपरेटिंग सिस्टम है तथा बिल गेटस् दुनिया के सबसे सफल एवं अमीर व्यक्ति हैं पर यह नहीं मालुम था कि वे इतने अमीर व्यक्ति हैं। मुझे लगता है कि लोग तो जलते हैं बस इसलिये कोसते हैं।
इस ईमेल के समाप्ति पर कुछ और भी स्माईली के साथ लिखा था। 'अंत में भी बताना उचित होगा कि यदि माइक्रोसाफ्ट विन्डोस के प्रयोगकर्ता को कम्प्यूटर के हर बार अवरोध (हैन्ग) होने पर उसे एक डालर का हर्जान दिया जाय तो बिल गेटस् ३ साल में ही दिवालिया हो जायेंगे।'
लोग लिनेक्स क्यों पसन्द करते हैं इस बारे में सुश्री एन्ड्रिया कॉर्डिंगली के विचार मैंने यहां लिखे हैं। मैं तो लिनेक्स पर इसलिये काम करता हूं क्योंकि मुझे इसका दर्शन अच्छा लगता है, यह कुछ भाईचारे की बात लगती है, और इस पर बौद्धिक सम्पदा की झंझट नहीं है। पर,
जाने क्यों लोग मोहब्बत किया करते हैं? शायद अल्लाह के पास पहुंचने के लिये, या फिर... होने के लिये करते हैं।

गुरुवार, 5 मार्च 2009

जयंत विष्णु नार्लीकर की विज्ञान कहानी

जयंत विष्णु नार्लीकर की विज्ञान कहानी - वामन की वापसी जयंत विष्णु नार्लीकर की विज्ञान कहानी - वामन की वापसीमुक्त मानक और वामन की वापसी' श्रंखला की इस कड़ी में बताया गया है कि मुक्त मानक क्यों उचित साधन हैं? इसे आप रोमन या किसी और भारतीय लिपि में पढ़ सकते हैं। इसके लिये दाहिने तरफ ऊपर के विज़िट को देखें। इसे आप सुन भी सकते है। सुनने के लिये यहां चटका लगायें। यह ऑडियो फाइल ogg फॉरमैट में है। इस फॉरमैट की फाईलों को आप,Windows पर कम से कम Audacity, MPlayer, VLC media player, एवं Winamp में;Mac-OX पर कम से कम Audacity, Mplayer एवं VLC में; औरLinux पर सभी प्रोग्रामो में,सुन सकते हैं। ऑडियो फाइल पर चटका लगायें फिर या तो डाउनलोड कर ऊपर बताये प्रोग्राम में सुने या इन प्रोग्रामों मे से किसी एक को अपने कंप्यूटर में डिफॉल्ट में कर ले। डाउनलोड करने के लिये पेज पर पहुंच कर जहां Download फिर फाईल का नाम लिखा है, वहां चटका लगायें। पंचतत्र की एक कहानी कछुआ और खरगोश के बीच हुई रेस के बारे में है। आधुनिक युग में, इस कहानी में कुछ जोड़ा गया है। मैंने इस कुछ दिन पहले इसी चिट्ठे पर लिखा था। इसके द्वारा मैंने ओपेन सोर्स सॉफ्टवेयर के महत्व को बताने का प्रयत्न किया था। लेकिन मुक्त मानक का महत्व बताने के लिए मैं एक दूसरी कहानी 'वामन की वापसी' (The Return of Vaman) के बारे में चर्चा करना चाहूंगा। यह प्रसिद्व खगोलशास्त्री जयंत विष्णु नार्लीकर (Jayant Vishnu Narlikar) के द्वारा लिखी एक विज्ञान कहानी है।यह कहानी तीन व्यक्तियों के इर्द-गिर्द घूमती है।भौतिक शास्त्री,कम्यूटर वैज्ञानिक, औरपुरातत्ववेता भौतिक शास्त्री, गुरूत्वाकर्षण के बारे में प्रयोग करना चाहता था इसके लिए उसे गहरा गड़ढा खोदना था। यह गड्ढा खोदते समय उन्हें एक प्लेट मिलती है जिसमें कुछ लिखा हुआ है पर वे समझ नहीं पाते हैं कि उसमें क्या लिखा है क्योंकि लोग उसकी लिपि पढ़ने में असमर्थ हैं।नीचे और खोदने पर एक घन मिलता है। घन पर तरह-तरह के चित्र बने हुए हैं। ये चित्र कुछ अजीब से हैं। प्लेट और घन दोनों एक अनजाने पदार्थ के द्वारा बने हुए हैं। जिससे उन्हें यह लगता है कि वास्तव में यह किसी उन्नत सभ्यता के द्वारा वहाँ रखे गये हैं। लोगों के समझ में नहीं आता है कि घन को कैसे खोला जाए। लेकिन घन पर बने चित्रों में एक चित्र में दो हाथी घन को विपरीत दिशा से खींच रहे होते हैं पर उसके बाद भी वे हाथी उसे खोलने में असमर्थ दिखते हैं। यह चित्र देखकर उन्हें १७वीं शताब्दी के जर्मन वैज्ञानिक आटो वान ग्यूरिक के द्वारा किये गये एक प्रयोग का ख्याल आता है। उसने दो ताँबें के ५१ सेमी. व्यास के अर्द्व गोलों, को आपस में जोड़कर उसके अंदर की हवा को बाहर निकाल दी थी। इसके बाद दोनो तरफ आठ-आठ घोड़ों के खींचने पर भी वे अलग नहीं हुए थे। ग्यूरिक, इससे हवा के दबाव का महत्व बताना चाहते थे। इस प्रयोग को याद आते ही उन्हें लगा कि शायद इस घन के अंदर से भी हवा निकाल दी गई हो। वे घन पर एक पतला से छेद करते हैं जिससे हवा अंदर चली जाती है और वह घन तुरन्त खुल जाता है।यह घन एक तरह का टाइम कैपसूल है जिसमें उस उन्नत सभ्यता के बारे में बातें थी। इस सभ्यता के लोग, कोई बीस हजार वर्ष पूर्व पृथ्वी पर रहते थे। कैपसूल के अन्दर यह बताया गया था कि किस तरह से एक खास तरह का आधुनिक कम्पयूटर बनाया जा सकता है। वे उस कम्पयूटर को बनाते हैं और उसका नाम गुरू रखते हैं। यह कम्पयूटर उन्हें एक मीटर ऊचां रोबोट बनाने का तरीका बताता है। यह रोबोट बौना है इसलिए इसका नाम वामन रखा जाता है। वामन कोई साधारण रोबोट नही हैं वह एक अत्यंत आधुनिक किस्म का रोबोट है। इस तरह के रोबोट की कल्पना आइज़ेक एसीमोव (Isaac Asimov) ने बाईसेन्टीनियल मैन (The Bicentennial man) नामक विज्ञान कहानी में की थी। इस कहानी में, उस रोबोट का नाम एंड्रयूज़ था। एसीमोव ने, बाद में इस कहानी को पॉस्ट्रॉनिक मैन (Positronic Man) नामक उपन्यास में बदल दिया। इसी के आधार पर बाईसेन्टीनियल मैन (Bicentennial Man) नामक फिल्म भी बनी है।इस फिल्म का ट्रेलर आप देखें। फिल्म की कहानी, मूल कहानी से बदल दी गयी है और फिल्म में यह एक प्यारी सी प्रेम कहानी है जहां एक रोबॉट प्रेम के कारण मानव (नश्वर) बनता है। यदि आपने इसे नहीं देखा है तो देखें।वामन बुद्विमान रोबोट है और उसमें स्वतन्त्र निर्णय लेने की क्षमता है। वह मुश्किलों को समझता है और उसका ठीक निर्णय भी लेता है। वामन अपने बनाने वालों से इस बात की प्रार्थना करता है कि उसे बताया जाए कि वह कैसे अपनी तरह के और रोबोट बना सकता है ताकि मानव जाति की सेवा की जा सके। यह पता नही चलता था कि उस उन्नत सभ्यता का क्या हुआ इसलिए भौतिक शास्त्री और कम्पयूटर वैज्ञानिक उसे यह विधि नहीं सिखाते हैं। वामन अपने आप को दूसरों से चोरी, इस वायदे पर करवाता है कि वे लोग उसे और वामन बनाने का तरीका सिखा देगें।एक ऎसी जगह जहाँ काम न करना पड़े, आराम ही आराम हो , स्वर्ग हो, जीवन का अंत है।आधुनिक सभ्यता के समाप्त होने का कारण प्लेट पर लिखा था पर चूंकि कोई उसकी लिपि नही पढ़ पा रहा था इसलिए यह पता नही चल पा रहा था। अंत में पुरातत्ववेत्ता लिपि को पढ़ने में सफल हो जाता है जिससे पता चलता है कि जब वामन को अपने जैसा वामन बनाने की विधि मालूम होती है और बहुत से वामन बन जाते हैं तो वे मानव जाति का सारा काम अपने हाथ में लेते हैं । एक दिन वे काम करना बंद कर देते है। तब तक वह उन्नत सभ्यता इतनी अभ्यस्त हो चुकी थी कि वह अपने आप के चला नहीं पायी। सच है,'Utopia, if there is one, is end of life.' एक ऎसी जगह जहाँ काम न करना पड़े, आराम ही आराम हो , स्वर्ग हो, जीवन का अंत है। सभ्यता का अंत पता चलने के बाद, यह बहुत जरूरी हो गया कि वामन को समाप्त किया जाए ताकि वह दूसरे वामन न बना सके। वह सभ्यता वामन को भी समाप्त कर देती है। यह सब कैसे होता है यही है इस कहानी में है।मुक्त मानक और वामन की वापसी भूमिका।। मुक्त मानक क्यों महत्वपूर्ण हैं?।। मुक्त मानक क्या होते हैं?।। मुक्त मानक क्यों उचित साधन हैं।। जयंत विष्णु नार्लीकर की विज्ञान कहानी -वामन की वापसी।। 'वामन की वापसी' विज्ञान कहानी का मुक्त मानक से सम्बंध