शनिवार, 10 अप्रैल 2010

सेना के खिलाफ कई मोर्चे

सेना के खिलाफ कई मोर्चे

हिमाचल प्रदेश में भारतीय सेना और स्थानीय लोगों के बीच बढ़ते विवादों का साया
रक्षा मंत्रालय तक पहुंच चुके हैं पहाड़ पर सेना की दादागिरी के कई मामले
सैनिकों का प्रदेश कहे जाने वाले हिमाचल प्रदेश के कई हिस्सो में भारतीय सेना और स्थानीय लोगों के बीच बढ़ते विवादों के चलते यहां सेना के खिलाफ ही कई मोर्चे खुल गए हैं। शिमला में जहां ऐतिहासकि अनाडेल ग्राउंड को लेकर सेना स्थानीय लोगों और प्रदेश सरकार के निशाने पर है, वहीं नाहन में स्थानीय लोगों और सेना के बीच जमीन के अधिकार को लेकर शुरू हुआ विवाद भी अभी तक थमने का नाम नहीं ले रहा है। आर्मी की राइजिंग स्टार कॉर्प के अधिकारियों व स्थानीय दुकानदारों के बीच उपजा विवाद अभी ठंडा भी नहीं पड़ा था कि कांगउ़ा में ही डिफेंस की टांडा फायरिंग रेंज में युद्वाभ्यास के बाद जिंदा बम्बों की चपेट में आने से हुई तीन स्कूली बच्चों की मौत के बाद यहां के आधा दर्जन गांवों के लोग यहां से फायरिंग रेंज को हटाने को लकर लामबंद होने लगे हैं। हिमाचल प्रदेश और हरियाणा की जमीन पर प्रस्तावित आर्मी की नारायणगढ़ फायरिंग रेंज को लेकर भी जम कर विवाद हो चुका है। राइजिंग स्टार कॉर्प की ओर से योल के आर्मी क्षेत्र में बांउडरी वाल लगाने के बाद जहां यहां के कई गांव केंटोनमेंट क्षेत्र से बाहर होने को छटपटा रहे हैं। योल के निकटवर्ती गांव के लोग आर्मी पर आरोप लगाते हैं कि सेना के लिए पंचायत ने जो गांव का ग्राउंड सेना को दिया था, उस ग्राउंड के चारों ओर बाड़ लगाकर सेना ने उनके ग्रेजिंग राइट(पशु चराने के अधिकार ) जबरन छीन लिए हैं। अब सूचना अधिकार कानून के सहारे ग्रामीण अपनी लड़ाई लड़ रहे हैं। इस पहाड़ी प्रदेश में सेना और सिविलियन के बीच पैदा हुए कई विवादों की शिकायतें रुक्षा मंत्रालय और राष्ट्रपति कार्यालय तक पहुंच चुकी हैं।
जिंदा बम्बों का

जिला के की टांडा फायरिंग रेंज की अधिसूचना 1977 में जारी की गई थी। इस फायरिंग रेंज में भारतीय सेना और अद्र्वसैनिक बल युद्वाभ्यास करते हैं। जिस वक्त यह फायरिंग रेंज बनी थी, उस वक्त इस क्षेत्र में आबादी नाममात्र ही थी, लेकिन पिछले तीन दशक में फायरिंग रेंज के एक किलोमीटर के क्षेत्र में घनी आबादी हो गई है। मार्च के पहले सप्ताह में इस फायरिंग रेंज पर सीमा सुरक्षा बल के सैनिकों ने युृद्वाभ्यास किया, लेकिन रेंज में सैंकड़ों जिंदा बम्बों को छोड़ कर सीमा सुरक्षा बलों के जवान चलते बने। इस लापरवाही का नतीजा 15 साल से कम आयु के तीन स्कूली छोत्रों साहिल, राहुल व चंदन को जान देकर भुगतना पड़ा। बेशक हादसे के बाद पुलिस ने क्षेत्र में सर्च अभियान चलाया और जिंदा बम स्क्वायर्ड ने कई जिंदा बम्बों को ढूंढ निकाला,लेकिन स्थनीय लोगों की मानें तो रेज की जद में आने वाले जंगलों में अभी भी कई जिंदा बम मौजूद हैं। कांगड़ा के जिला पुलिस प्रमुख उॉक्टर अतुल कुमार कहते हैं कि पुलिस ने आपीसी की धारा 304 के तहत मामला दर्ज कर लिया है । सेन्य प्रशासन से भी जानकारी जुटाई जा रही है और इस हादसे के लिए जिम्मेवार अधिकारयों की जवाबदेयी तय करने के लिए जांच खोल दी गई है। इस फायरिंग रेंज में दो दर्जन से ऐसे हादसे हो चुके हैं, बावजूद इसके बार बार विरोध के बावजूद यहां घनी आबादी के अंदर स्थित फायरिंग रेंज को बदला नहीं गया है। हालांकि जारी बजट सत्र में मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने इस फायरिंग रेंज को दोबारा से अधिसूचित करने की बात कही है। फायरिंग रेंज के नजदीकी गांवों कोहाला, कच्छयारी, खोली व टांडा गांवों में इस फायरिंग रेंज को हटाने का विरोध शुरू हो चुका है।

अनाडेल का खेल

शिमला में स्थित खूबसूरत अनाडेल ग्राउंड को लेकर प्रदेश सरकार और भारतीय सेना के बीच लंबे अर्से से शीतयुद्व जारी है। अंग्रेजों के बनाए इस ग्राउड को प्रदेश सरकार अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम के तौर पर विकसित करना चाहती है। प्रदेश सरकार की ओर से यह ग्राउंड सेना को 11 रुपए सलाना की लीज पर दिया गया था। 1990 में यह लीज खत्म हो चुकी है। लेकिन सेना के उच्च अधिकारियों के गोल्फ खेलने के शौक को पूरा करता आ रहा यह ग्राउंड सेना को इतना भा गया है कि रक्षा मंत्रालय के आदेश के बावजूद सेना यहां से हटने का राजी नहीं दिख रही है। इस स्टेडियम पर 1888 में फुटबाल के नामी टूर्नामेंट डूरंड कप का मैच आयोजित हुआ था। हालांकि प्रदेश सरकार ग्राउंड छोडऩे की एवज में सेना को कहीं ओर जमीन देने को राजी है, बावजूद इसके सेना का इस ग्राउड को लेकर मोह छूटने का नाम नहीं ले रहा है। मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने इस ग्राउंड को सेना से छुड़ाने के लिए राष्ट्रपति कार्यालय तक को हस्तक्षेप करने के लिए पत्र लिखा था। सेना के अधिकारी दलील देते हैं कि विकल्प के तौर पर प्रदेश सरकार सेना को कहीं दूसरी जगह जमीन उपलब्ध करवाने में नाकाम रही है। सेना यहां हवाई प्रशिक्षण के बहाने ग्राउंड पर अपना कब्जा जमाए रखने की फिराक में है। प्रदेश क्रिकेट एसोशिएशन(एचपीसीए) के अध्यक्ष अनुराग ठाकुर कहते हैं कि उन्होंने प्रदेश सरकार से मांग की है कि अनाडेल ग्राउंड एचपीसीए को दिया जाए। एचपीसीए यहां इंटरनेशनल स्टेडियम बनाने का सपना संजोए हुए है, पर सेना के रवैये के आगे एचपीसीए के ख्वाब पूरे होते नहीं दिख रहे हें।

फिसल गया गोल्फ ग्राउंड
कांगड़ा के योल सिथत आर्मी एरिया में स्थानीय दुकानदारों और सेना के बीच शुरू हुआ विवाद भी रक्षा मंत्रालय तक पंहुच चुका है। यह विवाद उस वक्त गहराया जब आर्मी एरिया में योल स्थित राइजिंग स्टार कोर्प के उच्च अधिकारियों ने बाउंड्री वाल लगाने का काम शुरू किया। आर्मी क्षेत्र से हटाए जाने का विरोध कर रहे दुकानदार कई दिनों तक सेना के खिलाफ मोर्चा खोले रहे और जिला प्रशासन को दखल देना पड़ा। योल आर्मी एरिया में बाउंडरी वाल लग जाने के बाद कई गांव योल केंटोनमेंट एरिया से बाहर होने के लिए छटपटा रहे हैं। प्रदेश सरकार के पास यहां के लोग कई बार अपना विरोध दर्ज करवा चुके हैं। योल के निकटवर्ती गांव धंलू के उस ग्राउड को लेकर भी विवाद है जहां आर्मी का गोल्फ ग्राउड है। पंचायत के लोगों का कहना है कि पंचायत ने यह ग्राउंड इस शर्त पर सेना को दिया था कि ग्राउंड में पशु चराने के अधिकार खत्म नहीं होंगे, लेकिन सेना ने अब इस ग्राउंड के चारों ओर तारबंदी कर दी है। चामुंडा नदिकेशवर धाम में संजयघाट का लोकापर्ण करने आई तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का उडऩखटोला इस ग्राउंड में स्थित हेलीपैड पर उतरा था। गांववासियों के पास पुराना राजस्व रिकॉर्ड नहीं है, ऐसे में वे आर्मी के इस फरमान का गांव के लोग विरोध नहीं की पाए हैं। अब गांववासी सूचना अधिकार कानून के तहत अपने हकों की लड़ाई लडऩे के लिए कमर कस चुके हें। गांव के पूर्व सैनिक एवं सीनियर सिटीजन सूबेदार कृष्ण कुमार कहते हैं कि आरटीआई के तहत रिकॉर्ड जुटाने के बाद ग्राउंड को छुड़ाने की मुहिम शुरू की जाएगी।

जमीन को लेकर जंग
रिमौर जिला के नाहन में जमीन के हक को लेकर सेना और स्थानीय लोगों के बीच जारी विवाद को हल करने के लिए सेना और जिला प्रशासन ने संयुक्त कमेटी का गठन किया है। जमीन किसकी है, इसके लिए सर्वे किया जा रहा है। इस विवाद को लेकर यहां के 15 गांवों के दस हजार लोग लोग सेना के खिलाफ खड़े हैं। पिछले दो दशक से जारी इस विवाद पर 15 जनवरी को डीसी सिरमौर की अध्यक्षता पदम सिंह की अध्यक्षता में संयुक्त कमेटी की ताजा बैठक हुई है। सेना के खिलाफ मोर्चा खोलने वाले गोरखसभा के अध्यक्ष राम सिंह थापा और सूबेदार प्रेमदत्त शर्मा का कहना है कि जिला प्रशासन और सैन्य प्रशासन इस विवाद को तत्काल हल करवाए क्योंकि सेना के इस रवैये के चलते इलाके की दस हजार आबादी को मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है। यहां आर्मी ने निर्माण पर रोक लगा दी है। भाजपा सांसद विरेंद्र कशयप इस मुद्दे को रक्षा मंत्रालय के साथ उठाने की बात कह रहे हैं। सिरमौर जिला में सेना और स्थानीय लोगों के बीच यह पहला विवाद नहीं है। इससे पहले भी सेना और सिविलियन आमने- सामने आ चुके हैं। इसी जिला में सेना की प्रस्तावित फायरिंग रेंज को लेकर भी विवाद हो चुका हे। प्रस्तावित रेंज में नाहन विधानसभा क्षेत्र की 12261 बीघा और पच्छाद विधानसभा क्षेत्र की 9954 बीघा जमीन का अधिग्रहण किया जाना है जिसमें दस हजार से लोग बेघर होने वाले हैं। तीन साल पहले से हरिायाणा व हिमाचल प्रदेश में सेना की नारायणगढ़ फायरिंग रेंज स्थापित होना प्रस्तावित है। नाहन के भाजपा नेता इस फारिंग रेंज का विरोध करते आ रहे हैं।

बलिदान के बावजूद नजरअंदाज

68 लाख की आबादी वाले हिमाचल प्रदेश में दो लाख सैन्य पृष्ठभूमि वाले परिवार हैं। 1962 के चीन युद्व से लेकर कारगिल आक्रमण तक प्रदेश के सैनिकों ने बलिदान की अनूठी गाथा लिखी है। सेना का सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र पहली बार इसी प्रदेश के सैनिक को लिता है तो कारगिल में विक्रम बतरा व सोरभ कालियां की बलिदान की कहानियां इसी पहाड़ी पद्रेश के शूरवीरों के नाम से जुड़ी हैं। कारगिल युद्व के दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने पहली बार केंद्र के साथ हिमाचल रेजीमेंट का गठन करने की मांग उठाई थी। प्रदेश की विधानसभा की ओर से भी इस बारे में प्रस्ताव पारित कर केंद्र सरकार को भेजे गए लेकिन यह ठंडे बस्ते में डाल दिए गए। हालांकि बाद में हिमाचल रेजीमेंट की जगह हिमालयन रेजीमेंट गठित करने के सियासी जुमले में उछाले गए लेकिन धरातल पर कुछ नहीं हुआ। पिछले एक दशक से लोकसभा व राज्यसभा में पहुंचते रहे कांग्रेस- भाजपा दोनों के सांसद भी इस मुदद्दे को दिल्ली में उठाते आए हैं लेकिन हिमाचल के हक नजरअंदाज ही हुए हैं। हालांकि चुनावी मौसम में जरूर यह मुद्दा फुटबाल बनता आया है। हिमाचली रेजीमेंट की पैरवी करने वाले एसएस गुलेरिया कहते हैं कि जब गढ़वाल के नाम पर गढ़वाल राइफल, जम्मू के नाम पर जैक राइफ्ल, पंजाब के नाम पर पंजाब रेजीमेंट तो फिर हिमाचल के नाम पर हिमाचल रेजीमेंट अथवा हिमालयन रेजीमेंट क्यों नहीं।

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