शनिवार, 19 मार्च 2011

आम आदमी की पहुंच से दूर सरकार की सूचना


सूचना के अधिकार की लौ अभी तक गांव- देहात तक नहीं पहुंची
आम आदमी की पहुंच से दूर सरकार की सूचना
जवाबदेह और पारदर्शी व्यवस्था की सरकारी घोषणाएं सिर्फ कागजी

बेशक देश में सूचना अधिकार कानून को लागू हुए पांच साल का लंबा अर्सा बीत चुका हो, लेकिन प्रदेश के अधिकतर गांवों में सूचना अधिकार का प्रयोग कैसे हो, ऐसी शिक्षा देने वालों का अभाव ही रहा है। ऐसे में गांव के लोग इस क्रांतिकारी कानून का प्रयोग करना नहीं सीख पाए हैं। हालांकि सारी दावों के अनुसार लोगों को इस कानून के प्रति जागरूक करने में लाखों खर्च किए गए हैं, लेकिन हकीकत यह है कि अभी भी इस कानून के प्रति जहां अफसरों में जहां नकारात्मक रवैया है, वहीं लोगों को इस बात तक का इल्म नहीं है कि उनकी मांगी सूचना अगर गलत मिलती है अथवा आधी अधूरी मिलती है तो उस सूरत में वह क्या करे। हालांकि ऐसा नही है कि लोग सरकारी सूचना हासिल नहीं करना चाहते, लेकिन सूचना हासिल करने के रास्ते में इतने रोड़े हैं कि आम आदमी के लिए सही सूचना हासिल करने में खासा वक्त और पैसा बर्बाद हो रहा है। प्रदेश सूचना आयोग भी प्रदेश के अफसरों को समय पर सूचना देने के लिए बाध्य नहीं कर पा रहा है। ऐसे में गांव स्तर पर ऐसी सूचनांए भी उपलब्ध नहीं हैं, जो जन सूचना अधिकारी को मांगे बिना लोगों को खुद उपलब्ध करवानी है। इसकी मुख्य वजह भी है कि सूचना अधिकार कानून के प्रसार प्रचार में काम करने वाली संस्थाओं को सराकर ने अपने साथ जोडऩा मुनासिब नहीं समझा है। हालांकि यह सुखद है कि समाजिक संस्थाओं की अपने स्तर पर की गई पहल के चलते अरविंद केजरीवाज जैसे सूचना अधिकार कानून का प्रारूप तैयार करने वाले राष्ट्रीय स्तर के कार्यकर्ता ने प्रदेश में सूचना अधिकार कानून का पाठ पढ़ाया।
जुर्माना देने को तैयार, सूचना देने से इनकार
प्रदेश में सूचना अधिकार कानून की धार कुंद करने में अफसर पूरी तरह से जुटे हुए हैं। सूचनाएं लटकाना, देर से देना, आधी अधूरी देना जेसे मुद्दे हर रोज सुर्खी बन रहे हैं। अफसर जुर्माना देने को तो तैयार हैं लेकिन सूचना से इनकार है।
बीते वर्ष प्रदेश के 124 जन सूचना अधिकारियों को 17,869 आवेदन प्राप्त हुए, जिनमें से 259 रद किए गए। तीन सौ से अधिकत सूचना अधिकार कानून के आवेदनों को अधिकारियों ने रद्दी की टोकरी में डाल दिया। ऐसे में अपील प्राधिकारियों के समक्ष 338 अपीलें दायर की गई। हैरानी तो इस बात कि है कि अपीलीय प्राधिकारी भी आवेदक की मांगी की सूचना उपलब्ध करवाने में नाकाम रहे और चार सौ के करीब मामलों में सूचना हासिल करने के लिए आम आदमी को शिमला स्थित सूचना आयोग के दरवाजे तक दस्तक देनी पड़ी। आयोग को 204 शिकायतें व 184 दूसरी अपीलें प्राप्त हुईं।
सूचना आयोग के फैसले अफसरों के ही पक्ष में
प्रदेश में सूचना अधिकार कानून के प्रचार प्रसार को लेकर काम करने वाले आरटीआई कार्यकर्ताओं का आरोप है कि प्रदेश में सही समय पर सूचना न देने वाले अधिकारियों के प्रति प्रदेश सूचना आयोग का रवैया अफसरों के प्रति पक्षपाती रहा है। आयोग ने अधिकतर मामलों में अफसरों को सूचना न देने पर या तो चेतावनी देकर छोड़ दिया अथवा बहुत ही कम मामलों में थोड़ा सा जुर्माना किया। सूचना आयोग सूचना समय पर उपलब्ध करवाने के लिए अफसरों को बाध्य करने में नाकाम रहा । सूचना आयोग की ओर से सूचना अधिकार कानून को जन जन तक पहुचाने में भी प्रदेश सूचना आयोग ने कोई अहम पहल नहीं की।
वीडियो कांफ्रेंसिंग दूर की बात
केंद्रीय सूचना आयोग ने बेशक अपीलें सूचने के लिए वीडियो कांफ्रंसिंग की सूविधा सारे देश में उपलब्ध करवा दी हो, लेकिन आईटी के क्षेत्र में राष्ट्रीय आवार्ड से इतराने वाले प्रदेश में प्रदेश सूचना आयोग वीडियो कांफ्रेसिंग के माध्यम से अपीलों अथवा शिकायतों की सुनवाई करने की व्यवस्था नहीं कर पाया है। हालांकि प्रदेश सूचना आयोग ने प्रदेश में सर्किट बैंच लगाने की पहल की लेकिन ज्यादातर अपीलों की सुनवाई शिमला में ही हुई। ऐसे में सस्ती सरकारी सूचना उपलब्ध करवाने की सरकारी बातें हवा ही लगती हैं।
हिमाचल प्रदेश में सूचना अधिकार कानून को लेकर जागरूकता फैलाने में बेशक सामाजिक संस्थाएं पहल कर रही हों लेकिन प्रदेश सूचना आयोग और प्रदेश सरकार का रवैया सूचना अधिकार कानून को कमजोर करने वाला ही रहा है।
अरविंद केजरीवाल, नेशनल आरटीआई एक्टिविस्ट ।
सूचना अधिकार कानून के तहत हासिल सूचनाओं से जब सरकारी अफसरों का भंडाफोड़ शुरू हुआ तो अफसरों ने सूचनाएं लटकानी शुरू कर दीं। सूचना आयोग भी अफसरों के पक्ष में ज्यादा दिखता है।
भुवनेश्वर शर्मा, आरटीआई ब्यूरो चंबा
सूचना अधिकार कानून के प्रति लोगों, जन सूचना अधिकारियों और अपीलीय अधिकारियों को एकसाथ जागरूक करने के प्रयास न सरकार की तरफ से गंभीर हुए और न ही सूचना आयोग की तरफ से।
लवण ठाकुर आरटीआई ब्यूरो मंडी
भ्रामक, अधूरी और देरी से सूचनाएं देने पर कई जन सूचना अधिकारियों को जुर्माना हो चुका है , लेकिन इसके बावजूद सूचना आयोग और सरकार अफसरों को सही और समय पर सूचना देने के लिए बाध्य नहीं कर पाई है।
एडवोकेट रणजीत चौहान, आरटीआई एक्टिविस्ट जोगेंद्रनगर

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