बुधवार, 2 मार्च 2011

पैसे की कमी की आड़, स्कूली खेल प्रतिभाओं से खिलवाड़

हिमाचल प्रदेश में अडऱ 17 खेल आयोजन बंद
अंडर 14 के बाद बाद अब अंडर 19 खेलने की ही व्यवस्था
आरटीआई के तहत ली गई सूचना में हुआ सनसनीखेज खुलासा

सारे देश में जहां अंडर 14 के बाद अंडर 17 स्कूली खेलों का आयोजन होता है, लेकिन हिमाचल प्रदेश में हिमाचल क्रीड़ा संघ के तानीशाही फरमान के चलते अंडर 17 स्कूली खेलों के आयोजन को बंद कर दिया गया है। ग्रामीण खेल प्रतिभाओं से खिलवाड़ का आलम देखिए कि अब यहां के ग्रामीण खिलाडिय़ों को उस समय अपने जोहर दिखाने का अवसर नहीं मिल रहा है, जब वे सबसे ज्यादा ऊर्जावान हाते हैं। प्रदेश क्रीड़ा संघ की आमसभा में प्रदेश के स्कूलों में होने वाले अंडर 17 खेल आयोजनों को यह कह कर दरकिनार कर दिया कि ऐसे आयोजनों के लिए स्कूलों के पास धन का अभाव होता है। सर्वागीण विकास का दम भरने वाले शिक्षा विभाग को लगता है कि अंडर 17 के खेल आयोजन से पढाई बाधित होती है। अंडर 17 खेल आयोजन को बंद करवाने के लिए प्रदेश क्रीड़ा संघ ने तीसरा कारण यह बताया कि अगर स्कूलों में अंडर 17 खेल आयोजन करवाए जाते हैं तो स्कूलों में समानांतर टीमें बन जाएंगी। लेकिन जब सूचना अधिकार कानून के तहत इस बारे में कामगार मजदूर संघ के अध्यक्ष संत राम ने सूचना हासिल की तो शिक्षा विभाग और प्रदेश क्रीडा संघ की पोल खुल गई है। आयोजन से पल्लू खींच लेने का सबसे बड़ा कारण आयोजन के लिए धन की कमी बताया गया लेकिन हकीकत यह है कि खेल आयोजन के लिए जितने पैसे की जरूरत होती है, शिक्षा विभाग स्पोर्टस फंड के रूप में बच्चों से पांच गुणा अधिक राशि एकत्रित कर रहा है। अंडर 17 स्कूली खेल आयोजन को बंद करने के प्रदेश क्रीड़ा संघ के इस कारनामे की शिकायत प्रदेश के शिक्षा मंत्री आईडी धीमान से की गई है।
खेल विशेषज्ञ मानते हैं कि 14 साल से लेकर 17 साल की उम्र में युवा सर्वाधिक ऊर्जावान होता है। सब जूनियर स्तर पर इसी उम्र में अधिकतर स्कूली खिलाड़ी अपनी खेल प्रतिभा के बलबूते अपने खेल कैरियर की बुनियाद रखते हैं। यही कारण है कि देश के सभी राज्य अंडर 17 स्कूली खेल आयोजनों का हर साल कलेंडर जारी करते हैं और अंडर 17 खेलों का राष्ट्रीय आयोजन भी होता है, लेकिन प्रदेश की स्कूली खेल प्रतियोगिताओं का दम घोंटने के लिए प्रदेश सरकार की ओर से यहां अंडर 17 खेलों के आयोजन से हाथ खींच लिए हैं। खेल विशेषज्ञों के अनुसार किसी भी खिलाड़ी के लिए अंडर 17 उसके कैरियर के लिए बेस होता है,ऐसे में प्रदेश की हजारों स्कूली खेल प्रतिभाओं के सुनहरे भविष्य को देखते हुए प्रदेश में फिर से अंडर 17 सकूली खेलों का आयोजन शुरू होूना चाहिए।
बेशक प्रदेश क्रीड़ा संघ जिसका अध्यक्ष प्रदेश उच्च शिक्षा निदेशक होते हैं, यह रोना रोता है कि ऐसे आयोजन के लिए पैसों की कमी खलती है लेकिन आरटीआई के तहत मिली जानकारी उसके इस दावे का खारिज करती हे। जिस साल अंडर 17 खेलों को बंद करने के फरमान जारी हुए उस साल शिक्षा विभाग ने स्पोर्टस फंड के नाम पर स्कूली बच्चों से 94,86720 रूपए जुटाए जबकि अंडर 17 खेलों के आयोजन पर मात्र 20,15844 रूपए की राशि खर्च हुई। यहां कि गौरतलब है कि स्कूली खेलों के आयोजन के लिए केंद्र और प्रदेश सरकार की ओर से स्कूलों को कोई धनराशि उपलब्ध नहीं करवाई जाती। कामगार मजदूर संघ के अध्यक्ष संत राम कहते हैं कि सारे देश में अंडर 17 स्कूली खेलों का आयोजन होता है, लेकिन हिमाचल प्रदेश में तानाशाही फरमानों के चलते यह आयोजन बंद कर दिया गया है। इस बारे में शिक्षा मंत्री आईडी धीमान से शिकायत की गई है।

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