शुक्रवार, 20 जनवरी 2012

हर साल सौ टन टाऊट मछली पैदा करने वाले पहाड़ पर नहीं मिल रहे खरीददार
ठंडे पानी की मछली का कारोबार हुआ ठंडा
मंडी, कुल्लू, शिमला और किन्नौर में ट्राऊट फार्मिंग से मुंह मोडऩे लगे लोग

विपणन की कोई व्यवस्था न होने पर अपने उत्पाद की पूरी कीमत नहीं मिल पाने के चलते प्रदेश में ट्राऊट फार्मिंग करने वाले लोग इस पेशे से मुंह मोडऩे लगे हैं। उत्पादकों को मलाल है कि ट्राऊट के कारोबार के लिए बेहतरीन विपणन और ट्रांसपोर्ट सुविधा न होने से उन्हें औने- पौने दाम पर अपना उत्पादन बेचने पर मजबूर होना पड़ रहा है। ऐसे में ट्राऊट पालन उनके लिए घाटे का सौदा बनने लगा है। गौरतलब है कि प्रदेश के मंडी, कुल्लू, शिमला और किन्नौर जिलों में ट्राऊट का उत्पादन होता है और हर साल प्रदेश में सरकारी और निजी टाऊट फार्म सौ टन ट्राऊट मछली का उत्पादन कर रहे हैं, लेकिन मार्केटिंग की सुविधा न होने के कारण निजी उत्पादक इस पेशे से मुंह मोडऩे लगे हैं।
दिल्ली - कोलकाता में खरीददार
ट्राऊट मछली के सबसे ज्यादा ग्राहक कोलकाता और दिल्ली में हैं और दोनों महानगरों में अच्छी कीमत मिलती है। दिल्ली में प्रति किलो चार सौ रूपए तक दाम मिलते है जबकि कोलकाता में इससे भी अच्छे दाम मिलते हैं, लेकिन इन बाजारों तक नहीं पहुंच पाने के कारण यहा के उत्पादकों को दो सौँ रूपए प्रति किलोगाम के हिसाब से अपना उत्पाद बेचना पड़ रहा है।
स्टडी का खुलासा
प्रदेश विश्वविद्यालय के एग्रो इकोनॉमिक्स रिसर्च सेंटर की ओर से की गई स्टडी में भी यह बात सामने आई हैॅ कि प्रदेश में मार्केटिंग सुविधाओं का अभाव होने के कारण ट्राऊट पालन घाटे का सौदा साबित होने लगा है। रणवीर सिंह, मिनाक्षी शर्मा और प्रताप सिंह की ओर से किए गए शोध में कहा गया है कि मार्केट की जानकारी और ट्रांसपोर्ट का अभाव ट्राऊट फार्मिंग की मुख्य समस्या है।
बीज और फीड का अकाल
ट्राऊट फार्मिंग से मुहं मोडऩे के पीछे यहां के उत्पादकों की यह भी मुख्य समस्या है कि प्रदेश में पैदा होने वाली रेनबो और ब्राउन टाऊट का बीज लोगों को आसानी से उपलब्ध नहीं हो पाता। इसके अलावा ट्राऊट पालन के लिए प्रदेश में फीड का भी कोई प्रबंधन न होने की वजह से लोगों को महंगे दामों पर प्रदेश के बाहर से फीड मंगवाने को मजबूर होना पड़ता है।
सौ फार्म कर ट्राऊट का उत्पादन
प्रदेश में 6 सरकारी ट्राऊट फार्म सहित 100 के करीब ट्राऊट फार्म स्थापित किए गए हैं। प्रदेश में 600 किलोमीटर कोल्ड वाटर स्ट्रीम में ट्राऊट उत्पादन संभव है। प्रदेश में स्थापित छोटे ट्राऊट फार्म में सलाना 900 किलो ट्राऊट का उत्पादन होता है वहीं बड़े फार्म में प्रति वर्ष 3400 किलोग्राम ट्राऊट उत्पादन होता है।
प्रोसेसिंग यूनिट चलाने को नहीं कोई तैयार
नेशनल फिशरी बोर्ड की ओर से कुल्लू के पतली कूहल में सैद्वांतिक तौर पर ट्राऊट प्रोसेसिंग यूनिट खोलने की मंजूरी है। करीब दो करोड़ की लागत से बनने वाले इस प्रोसेसिंग यूनिट को चलाने के लिए प्रदेश के फिशरी विभाग ने ट्राऊट फार्मिंग एसोशिएशन कुल्लू को ऑफर दिया था लेकिन एसोशिएशन के इनकार के बाद यह खटाई में पड़ गया है।
सौ साल पहले हिमाचल आई ट्राऊट
हिमाचल प्रदेश में ट्राऊट 1909 में आई थी। ब्रिटिश राज के दौरान ब्रिटिश अधिकारियों ने एंगलिंग गेम को बढ़ावा देने के लिए जम्मू - कश्मीर से ट्राऊट का बीज मंगवा कर कांगड़ा, चंबा और कुल्लू की ठंडी नदियों और सहायक नदियों में डाला था। देश में जहां ट्राऊट की 15 किस्में पाई जाती हैं,वहीं प्रदेश के रेनबो और ब्राऊन ट्राऊट पाई जाती है।

ट्राऊट फार्मिंग घाटे का सौदा बनने लगी है। मछली जल्दी खराब हो जाती है और बाजार तक पहुंचाने की कोई सरकारी व्यवस्था नहीं है। ऐसे में नजदीकी क्षेत्रों में सस्ते में मछली बेचने को मजबूर होना पड़ता है।
संत राम, ट्राऊट उत्पादक ,मंडी

प्रदेश सरकार यहां ट्राऊट उत्पादन को बढ़ाने के लिए गंभीर हैं और उत्पादकों की समस्याओं को ध्यान में रखते हुए ट्राऊट की मार्केटिंग के लिए उचित यातायात प्रबंधन और मार्केटिंग की व्यवस्था की जा रही है। पतली कूहल में ट्राऊट प्रोसेसिंग यूनिट शुरू करना भी इसी का हिस्सा है।
बीडी शर्मा, निदेशक फिाशरी डिपार्टमेंट हिमाचल प्रदेश ।

कोई टिप्पणी नहीं :

एक टिप्पणी भेजें