शुक्रवार, 25 जनवरी 2013

फिरें बंगां कजले इतरे लेई हर मौसम बंजारा यादां दा।।

अज खोल पिटारा यादां दा।
कोई लैह चुटाहरा यादा दां।।
है बंडणे जो नी कुछ बचेया
अज कर बंटबारा यादां दा।।

आज मैं फिर से देर से उठा हूं, मुझे डांट दे। मां मेरे बचपन का दुलार फिर से मुझे बांट दे।।

अपनों की ही जुबानी तो अपने राज निकले।जो राजदार रहे अपने वही दगाबाज निकले।।


आपने तो हर पल मेरी किस्मत के उजाले देखे।वो कोई ओर थे जिन्होंने मेरे पावों के छाले देखे।।



आज मैं फिर से देर से उठा हूं, मुझे डांट दे।मां मेरे बचपन का दुलार फिर से मुझे बांट दे।।


मैं भी बनावटी हूं और तूं भी बनावटी है।इस महफिल में हर चेहरा दिखावटी है।।


नेकियां बदनाम हैं यहां तोहमतों का दौर है....



शराफत तो अभिशाप है फितरतों का दौर है।
मुहब्बत करना पाप है नफरतों का दौर है।। 


अभिश्वास के माहौल में किसका करें यकीं।
हिफाजत अपनी आप है हादसों का दौर है।।


भागमभाग है लगी पर जाना कहां पता नहीं।
मंजिलों की छोडिए अजी रास्तों का दौर है।।


रीढ़ की हड्डी में विकार सा कोई आ गया। 
तलवे चटाई सीख लो मिन्नतों का दौर है।।

अंजाम खुद ही देखना इल्जाम कोई आएगा।
नेकियां बदनाम हैं यहां तोहमतों का दौर है।

मंगलवार, 22 जनवरी 2013

पाये कुनी पार दिनां दे...


पाये कुनी पार दिनां दे...

फि क्या करिये एतबार दिनां दे।
लग-लग जाहलू बार दिना दे।।

हन मेले बेशक चार दिनां दे।
 पर कितणे की प्रकार दिनां दे।।

कच्चिया उम्रा लग्गियां टुटियां।
 नी झलोहंदे हन भार दिनां दे।।

खरी न्याहल़प पेई जोबण रुत्ता।
बरियां साई इंजतार दिनां दे।।

हन अपने अपने सार दिनां दे।
भला पाये कुनी पार दिनां दें।।

 विनोद भावुक,
21 जनवरी 2013.

रविवार, 20 जनवरी 2013

बीड़ां।

आईयां बंडां पांदियां बीड़ां।
भाऊआं जो लड़ांदियां बीड़ा।।
बीड़ बड़ानु बल्लिय़ां मंगदे ।
सिरां खूब फटांदियां बीड़ा ।।
रसदे बसदे हाकम लंबर ।
रजेयां जो रजांदियां बीड़ा।।
इन्हां बीड़ां दे बड़े बखेड़े।
पीढिय़ां जो लड़ांदियां बीड़ा।।
हाकां तांई सब खूनी जंगा।
कौरव— पांडव बणांदियां बीड़ा।।
जे बंड बरोबर पोंदी जाहलू ।
कदी नी झूठ गलांदियां बीड़ां

बांदर।

बणा ते जे न्ठाहणे बांदर।
शहरां असां बसाणे बांदर।।
लैहण तलाशी पुलिसा साई।
किन्हां भला डराणे बांदर।।
शिमलें दिल्लिया डेरे लाये ।
होये बड़े सयाणे बांदर ।।
खुद मदारी बणना पोंदा।
तां कुनकी नचाणे बांदर।।
बांदर साहड़े पुरखे मितरो।
असां क्या स्खाणे बांदर ।।
रामकथा ही पढ़णा पोणी।
कमें कुसी लगाणे बांदर।।

असां लंगे गहरियां खाईयां ते।

कदी पेट नी छुपदे दाईयां ते।
पुछा इक्को पेटें जाईयां ते।
कैंह पिछें बहनां भाईयां ते।।
न चाचियां ते न ताईयां ते
नी टुकड़ा सरदा काईयां ते।।
जम्मी जिन्हां संसार जे दस्से।
क्या सच छुपाणे माईयां ते।।
बिना न्यूंदरां स्रीक नी ओंदे।
पुरोहत नी बिन साईयां ते।।
तिन्हां पहाड़ बणाएं राईयां दे।
असां लंगे गहरियां खाईयां ते।

इस इस शहरशहर का हर इक

इस शहर का हर इक पत्थर तो पहचाना हुआ है।
उम्मीदों के शहर में फिर से अपना आना हुआ है।।
इस बार लाया हूं अपने संग न जाने कितने तुजुर्बे।
फिर से अपना दिल धौलाधार पर दीवाना हुआ है।।

तेरे ही खरीदे खिलौने को ललचाएगा। 
दिल तो बच्चा है जी मचल जाएगा।।



इनसानों को उजाड़ पर प्रवासी परिदें बसाए हैं।
उसने हमारे हिस्से में कई पौंग बांध बनाए हैं।।

फुर्सत में लिखा है

फुर्सत में लिखा है, शिद्दत से पढऩा।
इश्क का किस्सा है, मुहब्बत से पढऩा।।



कुछ दिन तो बसो मेरी आंखों में,
फिर ख्वाब अगर हो जाओ तो क्या।
कुछ दिन तुम्हें सिमरू मैं सांसों में, 
फिर ख्वाब अगर हो जाओ तो क्या।।

कुछ दिन तो मेरे साथ चलो, 
हाथों में थामे हाथ चलो
कुछ लम्हें गुजारो बातों में,
फिर ख्वाब अगर हो जाओ तो क्या।।
कुछ दिन तो..

खाक फिर अपनों

खाक फिर अपनों को भी दिलासा निकले।
दरिया ही जब खुद प्यासा प्यासा निकले।।
रावी निकले आश्किों के हर जिक्र में हम।
जो बात वेदों की हो तो हम विपाशा निकले।।
अपने घर में तो सदा हम गुमनाम से ही रहे।
किसी पत्रकार ने खंगाला,हम खुलासा निकले।।
मेरे हिस्से की रोशनी भी फिर कहां से निकले।
सुबह का सूरज जो संग लेकर कुहासा निकले।।

तुजुर्बा होने पर

तुजुर्बा होने पर कितने ख्यालात बदल जाते हैं। 
दिन जब बदलते हैं तो हालात बदल जाते हैं।।

गमजदा मैं एक बेटी का बाप हो गया।।
बेटी का होना देश में अभिशाप हो गया।।
मेरे दामन में तो दामिनी का दर्द शुमार है।
मैं शर्मिंदा हूं और मैं भी नापाक हो गया।।

दुश्मनों के बेशक हम पर ही सदा निशाने रहे।
दोस्तों की महफिल में तोहमारे ही दीवाने रहे।। 
उनके नाम लिखी जहां कीशोहरत और दौलत।
अपने नसीब में तो शायरी और मयखाने रहे।।

जे नी पेटैं पेईयां रोटियां।


जे नी पेटैं पेईयां रोटियां।
तां सारियां गल्लां खेटियां।।

क्या बरताणा था बोटियां।
जे खाली थियां चरोटियां।।

थियां पल्लें जिथू कोठियां।
कैंह नीतां थियां खोटियां।।

गल्लां तिन्हां दियां मोटियां।
फिट जेहड़े करदे गोटियां ।।

जिंदगी की धूप बारिश

जिंदगी की धूप बारिश में संग दोस्तों-दुश्मनों का छाता रहा। 
कोई मेरा गुनाह तक छुपाता रहा कोई तोहमतें लगाता रहा।।

सोच में ही जब खोट थी फिर नीयत न भला कैसे डोलती।
मैंने फूल जिसको भेंट किए वह पत्थर ही बरसाता रहा।।

देवता को छूने का वरदान फिर भी न उसको मिल सका।
देवता की शान में पीढिय़ों से बजंतरी देवधुन बजाता रहा।।

अर्थशास्त्र के एक स्नातकोतर जो समाजशास्त्र चुन लिया।
कामयाबी के उस दौर में भी तब नाकामियों से नाता रहा।।

कामयाबी का हर सिला खुद को सलाम लेगा। नाकामी की हर दास्तां लिख मेरे नाम देगा।।

जो जो पास था, उसका एहसास न था।
जो दूर रहा, उसी का फितूर रहा।।


हंसी लवों पर दिल में गम है, यह कैसा दीवानापन है। 
सबके दिल के इक कोने में, कोई न कोई खालीपन है।।


वो जो हमें जागने की बद्दुआ दे गए।
सुना है नींद में वो भी बुड़बुड़ाते हैं।।


कई बार इश्क में ऐसा भी होता है, सुन लो।
बात दिल की कहने में सदियां गुजर जाती हैं।।


फितरत भी शराफत भी।
नफरत भी मुहब्बत भी।।
धूप-छांव जिंदगी में।
है आफत भी राहत भी।।


इधर मैं रोता रहा, उधर वह रोती रही।
ताउम्र मेरे नसीब में बारिश होती रही।।



लोग कहते हैं कि ये मेरी बात बचकानी है।
मेरा दावा कि दूध का दूध पानी का पानी है।।
इस हकीकत संग कि इक दिन मौत आनी है।
मेरी जिंदगी तेरे इश्क में और भी रूमानी है।।



मेरे लव पर नाम तेरा इक दुआ हो जाएगा
यह पता है एक दिन तूं जुदा हो जाएगा।।
अमीर के पांव पड़े हैं गरीब की बस्ती में,
पैसों की चमक से वह खुदा हो जाएगा।।


कामयाबी का हर सिला खुद को सलाम लेगा।
नाकामी की हर दास्तां लिख मेरे नाम देगा।।

बिरला कोई कबीर महल से अड़ कर निकला।।

हालत के थपेड़ों से जो भी लड़ कर निकला। 
मेरा दावा है वो उम्मीद से बढ़ कर निकला।।
जितनी ऊंची बना लो चाहे आलीशान इमारतें।
सूरज तो सदा हर घर- छत चढ़ कर निकला।
दरबार सजते रहे नवरत्नों से दौलत के बलबूते। 
बिरला कोई कबीर महल से अड़ कर निकला।।
शिव की नाजुक गजलों के उस रूमानी दौर में।
लडऩे की जिद उठी पाश को पढ़ कर निकला।।