इस शहर का हर इक पत्थर तो पहचाना हुआ है। उम्मीदों के शहर में फिर से अपना आना हुआ है।। इस बार लाया हूं अपने संग न जाने कितने तुजुर्बे। फिर से अपना दिल धौलाधार पर दीवाना हुआ है।। तेरे ही खरीदे खिलौने को ललचाएगा। दिल तो बच्चा है जी मचल जाएगा।। इनसानों को उजाड़ पर प्रवासी परिदें बसाए हैं। उसने हमारे हिस्से में कई पौंग बांध बनाए हैं।।
फुर्सत में लिखा है, शिद्दत से पढऩा। इश्क का किस्सा है, मुहब्बत से पढऩा।। कुछ दिन तो बसो मेरी आंखों में, फिर ख्वाब अगर हो जाओ तो क्या। कुछ दिन तुम्हें सिमरू मैं सांसों में, फिर ख्वाब अगर हो जाओ तो क्या।।
कुछ दिन तो मेरे साथ चलो, हाथों में थामे हाथ चलो कुछ लम्हें गुजारो बातों में, फिर ख्वाब अगर हो जाओ तो क्या।। कुछ दिन तो..
खाक फिर अपनों को भी दिलासा निकले। दरिया ही जब खुद प्यासा प्यासा निकले।। रावी निकले आश्किों के हर जिक्र में हम। जो बात वेदों की हो तो हम विपाशा निकले।। अपने घर में तो सदा हम गुमनाम से ही रहे। किसी पत्रकार ने खंगाला,हम खुलासा निकले।। मेरे हिस्से की रोशनी भी फिर कहां से निकले। सुबह का सूरज जो संग लेकर कुहासा निकले।।
तुजुर्बा होने पर कितने ख्यालात बदल जाते हैं। दिन जब बदलते हैं तो हालात बदल जाते हैं।। गमजदा मैं एक बेटी का बाप हो गया।। बेटी का होना देश में अभिशाप हो गया।। मेरे दामन में तो दामिनी का दर्द शुमार है। मैं शर्मिंदा हूं और मैं भी नापाक हो गया।। दुश्मनों के बेशक हम पर ही सदा निशाने रहे। दोस्तों की महफिल में तोहमारे ही दीवाने रहे।। उनके नाम लिखी जहां कीशोहरत और दौलत। अपने नसीब में तो शायरी और मयखाने रहे।।
जिंदगी की धूप बारिश में संग दोस्तों-दुश्मनों का छाता रहा। कोई मेरा गुनाह तक छुपाता रहा कोई तोहमतें लगाता रहा।।
सोच में ही जब खोट थी फिर नीयत न भला कैसे डोलती। मैंने फूल जिसको भेंट किए वह पत्थर ही बरसाता रहा।।
देवता को छूने का वरदान फिर भी न उसको मिल सका। देवता की शान में पीढिय़ों से बजंतरी देवधुन बजाता रहा।। अर्थशास्त्र के एक स्नातकोतर जो समाजशास्त्र चुन लिया। कामयाबी के उस दौर में भी तब नाकामियों से नाता रहा।।
जो जो पास था, उसका एहसास न था। जो दूर रहा, उसी का फितूर रहा।। हंसी लवों पर दिल में गम है, यह कैसा दीवानापन है। सबके दिल के इक कोने में, कोई न कोई खालीपन है।। वो जो हमें जागने की बद्दुआ दे गए। सुना है नींद में वो भी बुड़बुड़ाते हैं।। कई बार इश्क में ऐसा भी होता है, सुन लो। बात दिल की कहने में सदियां गुजर जाती हैं।। फितरत भी शराफत भी। नफरत भी मुहब्बत भी।। धूप-छांव जिंदगी में। है आफत भी राहत भी।। इधर मैं रोता रहा, उधर वह रोती रही। ताउम्र मेरे नसीब में बारिश होती रही।।
लोग कहते हैं कि ये मेरी बात बचकानी है। मेरा दावा कि दूध का दूध पानी का पानी है।। इस हकीकत संग कि इक दिन मौत आनी है। मेरी जिंदगी तेरे इश्क में और भी रूमानी है।। मेरे लव पर नाम तेरा इक दुआ हो जाएगा यह पता है एक दिन तूं जुदा हो जाएगा।। अमीर के पांव पड़े हैं गरीब की बस्ती में, पैसों की चमक से वह खुदा हो जाएगा।। कामयाबी का हर सिला खुद को सलाम लेगा। नाकामी की हर दास्तां लिख मेरे नाम देगा।।
हालत के थपेड़ों से जो भी लड़ कर निकला। मेरा दावा है वो उम्मीद से बढ़ कर निकला।। जितनी ऊंची बना लो चाहे आलीशान इमारतें। सूरज तो सदा हर घर- छत चढ़ कर निकला। दरबार सजते रहे नवरत्नों से दौलत के बलबूते। बिरला कोई कबीर महल से अड़ कर निकला।। शिव की नाजुक गजलों के उस रूमानी दौर में। लडऩे की जिद उठी पाश को पढ़ कर निकला।।