बुधवार, 27 फ़रवरी 2013

आज मैं अधिकार कल मिन्नत हो जाऊंगा

सीता की अग्रिपरीक्षा तो फिर काहे का राम है।
सियासत है सब यह तो सियासत को सलाम है।

रावण के अंत के लिए चाहिए विभीषण का साथ।
सच की जीत को भी क्या कोई षडय़ंत्र जरूरी है।।

मैं तेरे वजूद की जरूरी जरूरत हो जाऊंगा। 
देखना एक दिन मैं तेरी आदत हो जाऊंगा।।
लोकतंत्र मे वोटर का वजूद भी क्या खूब है।
आज मैं अधिकार कल मिन्नत हो जाऊंगा।।

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