बुधवार, 27 फ़रवरी 2013

औरत है जहां उस हर घर में संस्कार है।।

औरत है जहां उस हर घर में संस्कार है।। 

उस कानूनी व्यवस्था पर तो धिक्कार है।
जहां बराबर नहीं महिला को अघिकार है।। 

नाम को है देवी,समझा उसे जूती पांव की।
आदमी तो युग युग से ही बड़ा मक्कार है।।

दुनिया की हर गाली औरत के ही नाम है।
जननी के लिए दिल में कितना सत्कार है।।

जन्म मरण के फेर में ही फंसी रही औरत।
मर्द का तो हर जन्म में हुआ अवतार है।।

मर्दों के दम पर कोई घर मंदिर नहीं हुआ।
औरत है जहां उस हर घर में संस्कार है।।

विनोद भावुक, 18 फरवरी 2013

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